कविता

मॉ

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सबसे प्यारी होती मॉ
सबके दिल को भाती मॉ
मॉ बिन सब सुना लगे
नही कोई सहारा बने
मॉ बिन एक पल गवारा नही
जहॉ जाये वही सहारा मॉ
बीच नदी की धार मे
नाव की प्रतिवार मॉ
धूपो मे अपने ऑचल से
देती सबको छाव मॉ
सोते समय हाथ से सहलाकर
प्यारी लोरी गा सुलाती मॉ
भूख लगे तो झट से
खाना बना खिलाती मॉ
रोने पर आ जाती मनाने
क्यो उदास हुआ मेरे पुतर
यह कहकर बहलाती मॉ
हरदम बच्चे का ख्याल रखती
कभी देर ना करती मॉ
अपना तो फिकर न करती
बस बच्चे के लिये ही मरती
ऐसी प्यारी प्यारी मॉ
जग मे सबसे न्यारी मॉ

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४