माँ !
माँ !
माँ तुम मेरी जन्मदात्री
तुम पर मैं कुर्बान
माँ के चरणों में जन्नत है
जानत सकल जहान ।
जो कर दी तूने संग मेरे
मैं कैसे कर पाऊंगा
पहना के निज चर्म की जूती
भी ना कर्ज चुका पाऊंगा ।
अपने रक्त से माँ तुमने ही
इस बगिया को सींचा है
जब भी मैं रुदन करता था
प्रेम से तुमने भींचा है ।
डगमग करते पाँव थे मेरे
तब थाम के तुमने मेरी बैंया
चलते चलते दौड़ पड़ा मैं
दी मुझको ममता की छैंया ।
चल निकला जीवन पथ पर मैं
तू पूलकित हर्षाई थी
मेरा दुःख तकलीफ तुझे माँ
फूटी आँख न भायी थी ।
हर पल तेरी हर साँसें
आशिष मुझे दे जाती है
आशिष फलित होता सुनकर
तू मन ही मन हर्षाती है ।
हे माँ तू दे आशिष मुझे
जीवन में कुछ कर पाऊं मैं
कूल गौरव और निज मान बढ़ा
तेरे दूध का कर्ज चुकाऊं मैं ।