शांत मन
सर्दी की एक रात को समीरा शांति से अपना काम निपटाकर शांति से सोई थी. सुबह चार बजे, न जाने क्या हुआ, उसे कुछ पता ही नहीं चला. उसके पति ने करवट बदली, तो उसे हिलता हुआ पाकर कुछ आशंकित हो गए. तुरंत डॉक्टर विनोद, जो उनके पड़ोसी भी थे, उनको फोन लगाया. डॉक्टर आए, बी.पी. चेक किया और उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाने की सलाह दी. सरकारी पैनल पर उनका अस्पताल ही सबसे पास का अस्पताल था. तुरंत ऐम्बुलैंस को फोन करके खुद भी तैयार होने के लिए चल दिए. ठीक होकर वह घर आ गई. एक दिन सुबह सैर करते हुए उसे डॉक्टर विनोद मिल गए. समीरा ने उनसे पूछा- ”डॉक्टर साहब, एक बात बताइए, क्या मैं इतनी बीमार थी, कि मुझे पांच दिन आइ.सी.यू. में रहना पड़ा?” डॉक्टर विनोद बोले- ”दो दिन मरीज़ के होते हैं, तीन दिन डॉक्टर के. आपको तो कोई फ़र्क नहीं पड़ा, सरकारी पैनल का अस्पताल था.” समीरा यह सुनकर अवाक रह गई. समय अपनी गति से चलता गया. डॉक्टर के ऐसे ही धन से उनका अपना अस्पताल बन गया. उनके जैसी मानसिकता वाले डॉक्टर्स उसमें नियुक्त किए गए. एक बार डॉक्टर विनोद विदेश गए हुए थे. उनका बेटा भी समीरा जैसी हालत में उनके अपने अस्पताल में भर्ती किया गया. ”दो दिन मरीज़ के होते हैं, तीन दिन डॉक्टर के” जैसी मानसिकता वाले डॉक्टर्स ने पानी की तरह पैसा बहाकर उसका इलाज किया, पर कामयाब नहीं हुए. डॉक्टर विनोद का डॉक्टर बेटा बचाया नहीं जा सका. डॉक्टर विनोद ने खिन्न होकर बाकी डॉक्टर्स को ऐसी मानसिकता छोड़ने के लिए कहा. डॉक्टर्स ऐसी मानसिकता को तो क्या छोड़ते, डॉक्टर विनोद का अस्पताल ही छोड़कर चले गए. कर्ज़ में डूबा हुआ अस्पताल भी धीरे-धीरे डॉक्टर विनोद के हाथ से फिसल गया. अब वे घर में ही प्रैक्टिस करते हैं. नोटबंदी के चलते जहां सभी डॉक्टर्स अनाप-शनाप कैश से घबराए हुए थे, डॉक्टर विनोद शांत मन से अपनी प्रैक्टिस चालू रखे हुए थे. कई साल से उनके प्रैक्टिस कैशलेस जो चल रही थी!