कविता : पहला कदम
घेरे हुए थे मुझे चारों ओर से
पीड़ामय जग के सारे बादल काले
अपनी अँधेरी झोंपड़ी में
अकेले बैठा मैं
देख रहा था आशा में
अंबर की हर चमक
कि अब खुल जायेगा जीवन का रास्ता
निराशा की टप-टप बूँदें बदल गयीं
वर्षा की झड़ी में
भिगो गयी मुझे अंदर तक.
बहने लगी गली-गली में नदी बनकर
गंदा पानी
मल-मूत्र की बदबू फैलाता
नहीं कर पाता साहस
बाहर निकलने का
देने लगी निमंत्रण मौन की निशा
आओ, चुप्पी की गोद में सो जाओ,
मेरे अंदर की भूख और प्यास की जलन
बन गयी वेदना का गीत
सूख गए आँसू हृदय के रेगिस्तानी में
दीनता की गाथा ने आज स्याही बन
निकाला है गली में
पहला कदम ।