चलते हैं लोग दुनिया में कभी तेज, कभी चुस्त कभी सीमाओं के अंदर, कभी सीमाओं को पारकर जो अंधेरे में होते हैं, कोई सहारा नहीं जिसका वे चलते हैं धीरे – धीरे, सब लोग चलते हैं रोशनी में लेकिन बहुत कम लोग मजबूरी से रात में भी चलते हैं भेदों को पारकर आगे बढ़ते हैं, […]
Author: पी. रवींद्रनाथ
/ सत्य की खोज़ में…. /
फैलें दुनिया में निर्मल संघ सत्य की खोज़ें जारी रहें अंगुली मालों को बदलने की शक्ति हर बुद्ध के अधीन में आ जावें निकलें हर दिल से सुख विचार शांति दें संसार को सत्संग विहार, मंटप हों जहाँ-तहाँ मिले लोग एक दूजे मित्रवत साधना के बगैर निकले कहाँ सुविचार, भाईचारे का भरमार खुले आसमान हो […]
शांति की राह में…
तलवार से अगर जीत मिलता तो सबके हाथों में तलवार होते हैं, मनुष्य नहीं, हर जगह हिंस जंतु रहेंगे। छीनना, झपटना, स्वार्थ का रूप है हिंसा कभी भी स्वीकार्य नहीं है ‘विजय’ तलवार व बंदूक से कभी भी नहीं हो सकता कि ‘जीत’ आंतरिक परिवर्तन का एक रूप है शांति, अहिंसा, भाईचारा बड़ी देन है […]
/ वात्सल्य /
बेटे की प्रतिभा हरेक पिता को लगती है अपनी प्रतिभा उस बेटे में पिता अपने आपको देखने लगते हैं कि बेटा अपनी आशाओं का बहुत बड़ी भरमार है वह हमेशा चाहते हैं कि अपनी संतान बढ़िया कदम लें जीवन में कुछ कर दिखायें उन्नति के पथ पर अग्रसर होते रहें जनता के साथ जनता के […]
/ आधुनिकता के आईने में /
दौड़ते रहते हो तुम? जग में अकेला ! कहाँ तक ? कब तक ? क्या पाया तुमने अब तक इस दौड़ में ? अपने आपको भूलकर कौन हो तुम ? मनुष्य हो या यंत्र ! न प्राण है तुम में, न मनुष्य होने की चेतना अलग हो गये हो, अन्य जीव, जंतुओं से ? बंधु […]
/ सच के आईने में…/
सच के आईने में… आसान है पुस्तकें पढ़ना, और अपने विचार को जोड़़ना, लेकिन, सच के आईने में कठिन होता है दूसरों को पढ़ना और गहराई में छिपे उस अंतरंग को समझना, डराती है अहं की छाया वह हर जगह, विभिन्न रूपों का जहाँ श्रम की पूजा नहीं होती वहाँ केवल अंधा श्रद्धा का आवेग […]
/ यथार्थ की दुनिया में…/
कई लोग ऐसे हैं बढ़-बढ़कर दूसरों से बोलते हैं, लेकिन बहुत कम लोग अपने आप से बोलते हैं अपने में दूसरों को देखना दूसरों में अपने को देखना सबसे बड़ी साधना है मनुष्य का, यथार्थ में, दुनिया में हम देखते हैं जरूरत पड़ने पर सब कुछ बदलते रहते हैं परिवर्तन एक सत्य है बहुत कुछ […]
/ विचारों की दुनिया में /
रास्ता सीधा नहीं होता धरती के अनुरूप वह करवट लेता रहता है कभी बायें की ओर कभी दायें की ओर सीधा चलनेवाले को टक्कर लेना पड़ता है कहीं पत्थरों से, कहीं कांटों से सरल नहीं होता है उसे उतार – चढ़ावों को पारकर अपने रास्ते से निकल जाना पर्वत होते हैं नदियाँ होती हैं सामान्य […]
/ भाषा /
अलग है मेरी भाषा तुम्हारी भाषा से, अलग है दुनिया में मनुष्यों की भाषा कई रूप हैं भाषा के, पुस्तक की भाषा बोलचाल की भाषा, श्रम की भाषा मूक-गूँगे की भाषा, शरीर की भाषा माँ की भाषा, परिवार की भाषा मौन भाषा, साधना की भाषा, धर्म की भाषा, राजनीति की भाषा भक्ति की भाषा, भूख […]
तरीका है वह जीने का!
तरीका है वह जीने का! सभी सीखने लगे हैं, हाय रे! हर बात पर सिर हिलाते हाँ, हाँ कर स्वर में स्वर मिलाते जरूरत पड़ने पर नाटक चलाते अपने आपको बचाने में थोप देते हैं अपनी गलतियाँ भी आसानी से दूसरों पर नकली को असली साबित करते मीठे स्वर में बोलना हाँ, हाँ सरल तरीका […]