कविता

ठुकरा मत दो, प्यार करो

गलत है, अनदेखा चलना
बड़े-बूढों को, उनके कदमों को,
दिल से सच्चे होते हैं वे
अपने को एक जीव मानते हैं,
भेद नहीं करते, दीन – दुःखियों को
अपने दिल पर लगाते हैं
देवी-देवता से बढ़कर वे
मानवता को महान मानते हैं,
बड़ाई उन्हीं के नाम हैं
नित्य – सत्य संकल्पना में
जीवन की अपनी परिभाषा है
अपनी कमाई की रोटी
वे खाते हैं, भोगी नहीं त्यागी होते हैं,
फूल-फलों से लदे पेड़ हैं वे
खुशबू फैली रहती जग के चहुँ ओर
समय के साथ कदम लेते
खोज़ है, एक आविष्कार है उनकी जिंदगी
अनुभव का सार है अपने जमाने का
बड़े होना, बूढ़ा बन जाना
परिणति की अवस्था है वह
गलत है, अनसुना चलना
समता – ममता, बंधुता – भाईचारे की
भव्य वाणी को ठुकरा देना,
पके – फल स्वादिष्ट होते हैं,
ऊर्जा हमें देती है आगे बढ़ने का
ठुकरा मत दो, प्यार करो।

— पैड़ाला रवींद्र नाथ

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।