कविता

/ समता के तल में

कई परिभाषाएँ आती हैं
हमारे सामने जिंदगी की
अपने – अपने अनुभव से
निकलता है निष्कर्ष निज के
देश, काल, ऋतु, परिस्थितियाँ
सिखाती हैं हमें हर पल
जिंदगी की एक नई परिभाषा
कोई झूठ खाता है तो
कोई सच को निकालता है
लेकिन इंसानों के समाज में
अपने को श्रेष्ठ मानकर चलना
सबसे बड़ी धोखा है कि
कोई दिमाग से चलता है तो
कोई दिल से, श्रम से,
कोयल का मान देकर
कौए को भगाना, दुत्कारना
गलत है वह निर्णय जगत में
आहार-विहार से, व्यवहार से
होता नहीं किसी का समान भूमि,
उतार – चढ़ाव, सबका होता है
तोला नहीं जाता सबका यहाँ से
समतल पर सबको स्वीकारना
समभाव स्थापित करना उन्नति है
वह सच्ची मानसिक परिणति है
शिखर पर या किसी घाटी में
भगवान का दर्शन करने से
सौ गुणा अधिक होता है सुकून
ज्यादा हल्का होता है मन-प्राण
असहाय लोगों का हाथ पकड़कर
समतल पर आगे का कदम लेना
वर्ण – वर्ग – जाति – धर्म की
समाज के बीच में यह भिन्नता
कंटक न हो किसी का, कहीं भी
जीव – जंतु, हर इंसान के साथ
प्यार का बंधन जोड़े रहे दुनिया में
मानवीय मूल्य खिल जाएँ
हर दिल में, समता के तल में
जन्म होता रहे मनुष्य का जग में
जाना, परखा जाय जिंदगी की परिभाषा
आचरण के आधार पर हो जावें मनीषा।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।