कविता

एक दिन अवश्य ऐसा हो

एक दिन अवश्य ऐसा हो…

श्रमधन का मूल्य

जन मानस में

दिव्य शोभा बनेगा

श्रम बिंदु मोती बनकर

मानवता के शिरोमुकुट में

जगमग-जगमग चमकेगा ।

एक दिन अवश्य ऐसा हो…

संकुचित कुटिल मन

पीड़ा का जाल नहीं रचेगा

मान-सम्मान के उत्तुंग शिखर पर

श्रमजीवि का दरहास दिखेगा ।

एक दिन अवश्य ऐसा हो…

भेद-विभेद मुक्त इंसान

इंसान का रूप धारण करेगा

धीर-गंभीर हो वनिता में

अस्मिता का चेहरा खिल जायेगा

जाति-धर्म , संप्रदाय की बात नहीं

प्रतिभा का प्रभुता चलेगा

पृथ्वी पर हरियाली का रौनक

हर आदमी को आलिंगन करेगा।

–—————– पी.रवींद्रनाथ ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।