एक दिन अवश्य ऐसा हो
एक दिन अवश्य ऐसा हो…
श्रमधन का मूल्य
जन मानस में
दिव्य शोभा बनेगा
श्रम बिंदु मोती बनकर
मानवता के शिरोमुकुट में
जगमग-जगमग चमकेगा ।
एक दिन अवश्य ऐसा हो…
संकुचित कुटिल मन
पीड़ा का जाल नहीं रचेगा
मान-सम्मान के उत्तुंग शिखर पर
श्रमजीवि का दरहास दिखेगा ।
एक दिन अवश्य ऐसा हो…
भेद-विभेद मुक्त इंसान
इंसान का रूप धारण करेगा
धीर-गंभीर हो वनिता में
अस्मिता का चेहरा खिल जायेगा
जाति-धर्म , संप्रदाय की बात नहीं
प्रतिभा का प्रभुता चलेगा
पृथ्वी पर हरियाली का रौनक
हर आदमी को आलिंगन करेगा।
–—————– पी.रवींद्रनाथ ।