उपन्यास अंश

आजादी भाग –१३

   बड़ी देर तक विनोद के पिताजी उसकी माँ के सामने उसके बारे में अनाप शनाप बयानबाजी करते रहे । उन्हें सुन सुन कर कल्पना मन ही मन आहत होती रही । लेकिन विवश कल्पना ने खुद को रसोई में व्यस्त रखा और थोड़ी देर बाद जब नाश्ता तैयार हो गया तो विनोद की माँ से मुखातिब होते हुए धीमे स्वर में बोली ” माँ जी ! बाबूजी से कहिये नाश्ता तैयार है और आप भी नाश्ता कर लीजिये ! ”
कल्पना को रुखा सा जवाब मिला ” वो तो ठीक है ! लेकिन हम नाश्ता करने के लिए ही यहाँ नहीं आये हैं । हमें अपने पोते राहुल की बड़ी फ़िक्र हो रही है और तुम्हें नाश्ते की सुझ रही है । जब तक हमारा राहुल नहीं मिल जाता तब तक क्या दाना पानी हमारे गले से निचे उतरेगा ? ”
थोड़ी देर रुक कर खुद से बड़बड़ाते हुए  फिर उनका प्रवचन शुरू हो गया ” एक हम हैं जो राहुल के फ़िक्र में चिंतित होकर रात भर ढंग से सो भी नहीं पाए और सुबह से बाहर उठकर टहल रहे हैं और पता कर रहे हैं शायद उसका कोई सुराग मिल जाए । भूख प्यास की हमें बिलकुल भी चिंता नहीं है । मैं तो सुबह से ही माता रानी से हाथ जोड़कर मना रही कि हूँ कि हे माँ ! तू मेरे राहुल को सही सलामत घर पहुंचा दे । मैं राहुल को साथ लेकर तेरे दर्शन करने आउंगी । हमारा ये हाल है और जिनके बेटी बेटे हैं उन्हें तो कोई फ़िक्र ही ना है । एक महारानी अभी सोकर उठ रही हैं और श्रीमानजी तो अभी तक घोड़े बेच कर सो रहे हैं । अरे ! इन्हें तो लोकलाज का भी डर नहीं है ।  इनको जरा भी परवाह नहीं है कि लोग क्या कहेंगे ? ”
” माँ जी ! अब बस भी कीजिये और चल कर नाश्ता कर लीजिये । समय हो गया है । ”  कल्पना ने माँ जी को समझाना चाहा था लेकिन परिणाम तो विपरीत ही हो गया । माँ जी बिफर पड़ी ” क्या बस करिए ? मैं क्या कुछ गलत कह रही हूँ ? और अब हमें तुमसे सिखना पड़ेगा कि क्या सही है और क्या गलत ? ये आजकल के लडके लड़कियों में तो संस्कार नाम की कोई चीज ही नहीं है । अगर इन्हें कुछ समझाओ तो भी बुरा मान जाते हैं । बेटे की फिकर है नहीं कोई सोने में तो कोई अपनी रसोई में ही मस्त है । अब हम तो इनकी तरह से लापरवाह नहीं हो सकते न ? आखिर राहुल हमारा खून जो है , हमारा वारिस हमारे जिगर का टुकड़ा है । हम उसके बिना एक कौर भी कैसे मुंह में डाल सकते हैं ? ”
और कल्पना को याद आ रहा था रात का वह दृश्य जब वह तवे पर रोटी सेंक रही थी । बाबुुजी खाने के लिए बैठे थे और माँ जी ने आवाज लगायी थी ” बहू जरा एक रोटी और देना । ”
फिर भी मन में उठ रहे ऐसे विचारों को झटक कर कल्पना ने संस्कार का चादर ओढ़े ही रखा और शालीनता से बाबूजी के लिए नाश्ते की तैयारी करती रही ।
बाबूजी और बाद में माँ जी की बडबडाहट करवटें बदल रहे विनोद के कानों तक पहुँच गयीं । उसे स्पष्ट तो कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था लेकिन अपुष्ट आवाजों ने भी उसकी नींद में खलल पैदा कर दी थी । वह उठा और साथ ही लगे शौचालय में घुसकर नित्यकर्म में व्यस्त हो गया ।

दिन काफी ऊपर तक चढ़ आया था । सूर्य रश्मियाँ झोपड़े के ऊपर फैले वृक्ष की पत्तियों से छनकर झोपड़े में सोये चारों के चेहरे पर अपना प्रभाव देखने को आतुर हो उठीं । थोड़ी ही देर में किरणों ने अपना असर दिखाया और उनके चेहरों से होकर चेतना उनके मस्तिष्क तक जा पहुंची ।  मस्तिष्क के आदेशानुसार उनके जिस्मों ने हरकत करनी शुरू कर दी और थोड़ी ही देर में लोटते पोटते और आँखें मसलते हुए चारों उठ बैठे ।
विजय ने बदन खुजाते हुए अंगड़ाई ली और तीनों को उठ कर बैठते देख बोला ” गुड मोर्निंग साथियों ! ”
अलसाये हुए स्वर में तीनों ने एक स्वर से जवाब दिया ” गुड मोर्निंग भाई ! ”
” चलो ! बाहर बोरिंग है । फटाफट हाथ मुंह धोकर तैयार हो जाओ । आज हमें असलम भाई से मिलने जाना है । ” कहते हुए विजय उठा और बाहर निकल गया ।
थोड़ी ही देर में सोहन और फिर रईस भी उठे और बाहर निकल गए । राहुल अकेला ही कमरे में बचा । राहुल थोड़ी देर तक वैसे ही बैठा रहा । पुआल पर सोने की वजह से रात में उसे ठंडी तो नहीं लगी थी लेकिन उसका पुरा बदन खुजला रहा था । बदन खुजाने में व्यस्त राहुल के पेट में गड़बड़ शुरू हो गयी । वह सुबह उठते ही शौच जाने का अभ्यस्त था । लेकिन यहाँ उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहाँ जाये क्या करे ? आखिर  कुछ प्रयास तो करना ही पड़ेगा सोचकर वह बाहर आ गया । बाहर आकर उसने अपने आसपास का जायजा लिया । यह झोपड़ी सड़क के बिलकुल किनारे बनी हुयी थी और इसीसे लगकर इसके पिछवाड़े से एक बड़ा गन्दा नाला बह रहा था । झोपड़ी के पिछवाड़े सिर्फ बाहर निकलने जीतनी ही जगह थी और फिर नाले की तरफ ढलान शुरू हो गयी थी । इसी जगह पर खड़े होकर राहुल ने नाले की तरफ देखा । नाले में पानी लगभग नहीं के बराबर था । उसके बीच से गंदे पानी की टेढ़ी मेढी पतली धारा शहर से बाहर की ओर बह रही थी । तभी सोहन नाले में से ऊपर की तरफ चढ़ता हुआ दिखा । राहुल के नजदीक आकर उसने पुछा ” अरे ! तूू अभी तक ऐसे ही खड़ा है । तैयार नहीं हुआ । क्या कर रहा है ? ”
राहुल ने अपने दायें हाथ के पंजे से दो उंगलिया उसकी तरफ दिखाते हुए बोला ” अभी तो मैं इस दो नंबर के जुगत में लगा हुआ हूं समझ नहीं आ रहा । यहाँ कहीं आसपास शौचालय दिख भी नहीं रहा । सोहन भाई ! बताओ न कहाँ जाना पड़ेगा इसके लिए ? ”
उसकी बात सुनकर सोहन खिलखिलाकर हंस पड़ा ” अरे बेेेवक़ूफ़ ! इससे अच्छी जगह तुझे निबटने की नहीं मिलेगी । जा उतर जा नाले में । पानी भी तुझे वहीँ करीब ही मिल जायेगा । ”
नाले का नाम सुनते ही राहुल ने अपने हाथ से नाक दबा लिया और घृणा से मुंह बिचका लिया ।
सोहन उसकी तरफ ध्यान दिए बिना अपने हाथ पाँव और मुंह धोने में लग गया ।
राहुल शौच की जबरदस्त हाजत महसूस करके भी नाले में शौच के लिए जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । एक तो नाले की गन्दगी और ऊपर से खुले में बैठना कहीं से भी उसे रास नहीं आ रहा था ।
थोड़ी ही देर में विजय रईस और सोहन तैयार होकर वहाँ से निकलने को तैयार हुए । राहुल भी उनके साथ बेमन से लगभग घिसटता हुआ सा चल रहा था ।
रात से अब तक की पुरी घटना याद करके वह अपने आपको गुनहगार मान रहा था । बड़ी जल्दी उसके सीर से फिल्म में देखे गए नायक जैसा बनने का भूत उतर गया था । हकिकत की धरातल से टकराकर उसके सारे सपने चूर चूर हो गए थे । यह गुनहगारों की जिंदगी और साथ ही उनके रहने का तौर तरीका तो उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आ रहा था । सोच रहा था ‘ इनकी जिंदगी भी कोई जिंदगी है । गुनाह करते हुए काली जिंदगी जीते हुए भी हमेशा पकडे जाने का डर इन्हें सताते रहता है । बदले में इन्हें हासिल क्या होता है ? वही रुखा सुखा और गन्दा सडा जो भी मिल जाये खा लेते हैं । कहीं भी और कैसे भी सो लेते हैं । न खाने का ठिकाना न सोने का न रहने का । और काम इतना खतरनाक करना पड़ता है । इतना ही नहीं जब पूरी दुनिया सोती है मीठे मीठे सपने देखती है तब इन्हें अपने शिकार की तलाश में ठिठुरने के बावजूद भटकना पड़ता है । बड़ी मुश्किल है इन जैसों की जिंदगी । कम से कम मुझे ऐसी कोई परेशानी तो नहीं थी । फिर मैं क्यों घर छोड़ आया ? मेरी तो मति ही मारी गयी थी जो अपने माँ बाप के प्यार को समझ ही नहीं पाया और उन्हें दुश्मन मान कर अपना स्वर्ग सा घर छोड़कर इन चोरों के साथ दर दर भटक रहा हूँ । ‘

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।