ग़ज़ल : दिल को सँभाला होगा
किस तरह तुमने भला दिल को सँभाला होगा।
जब मुझे अपने खयालों से निकाला होगा।
दूर वो मुझसे रहे खुश हो ये मुमकिन ही नहीं,
दर्द को मान लो मुस्कान में ढाला होगा।
हुक़्म है एक सितारे को फ़ना होने का,
अब तो सूरज का तेरे घर में उजाला होगा।
मैं इसी ख़्याल में डूबा हूँ हुआ क्या है जो,
बीच बाज़ार मुहब्बत को उछाला होगा
रौंद इस दिल को अगर तुमने बढ़ाये हैं कदम
रास्ता फिर वो यकीनन कोई आला होगा।
— प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’