संस्मरण

मेरी कहानी 191

गोवा कैंडोलिम एअरपोर्ट से जब उड़े थे तो दुपहर का वक्त था। सुबह छै सात बजे हम इंग्लैंड की मानचैस्टर एअरपोर्ट के बाहर आ गए। बाहर स्नो पढ़ी हुई थी। कैफे में बैठ कर हम नैशनल ऐक्सप्रैस कोच का इंतज़ार करने लगे, हमारी रिटर्न सीटें पहले से ही बुक थी। कोच आने में अभी एक घंटे का वक्त रहता था। चाय काफी पीते पीते हम शीशे की दीवार से बाहर कोच को भी देख रहे थे। चाय काफी पीते पीते बातों में वक्त का पता ही नहीं चला और कोच आ कर खड़ी हो गई। अपना अपना सामान ट्रौली में रख कर हम बाहर को चल पड़े। कुछ सैकंड में ही हम अपना सामान लगेज कम्पार्टमैंट में रख कर और टिकटें दिखा कर कोच में जा बैठे। बाहर बर्फ के ढेर लगे हुए थे लेकिन कोच के अंदर का तापमान गर्म था। कुछ ही मिनटों में कोच भर गई और ड्राइवर ने दरवाज़ा बंद कर दिया और कोच को रिवर्स करके चल पढ़ा। कुछ ही मिनटों में हम मोटरवे पर आ गए और कोच ने स्पीड पकड़ ली। जैसे जैसे हम अपने शहर के नज़दीक आ रहे थे, स्नो का कोई नामोनिशान नहीं था। रास्ते में ही हम ने संदीप को मोबाइल कर दिया कि वोह वक्त पर कोच स्टेशन पर आ जाए। तरसेम ने भी अपने बेटे को मोबाइल कर दिया। गिआरां बारां बजे हम कोच स्टेशन पर आ गए। गाड़ीआं आई हुई थीं और बैठ कर घर आ गए। कितनी ख़ुशी होती है, अपने घर आ कर। इसी लिए तो कहते हैं, EAST OR WEST, HOME IS THE BEST .
घर आ के सामान निकाला और खाली सूटकेस ऊपर लॉफ्ट में रख दिए। कुलवंत ने गंदे कपडे वाशिंग मशीन में डाल दिए, सविच ऑन किया और कपड़े मशीन में घूमने लगे। बच्चों के तोहफे उन को दे दिए और बेटियों के तो उन को क्रिसमस पे ही देना था। एक दिन तो आराम किया और रात को सो कर सफर की थकान दूर हो गई और दूसरे दिन 21 दिसंबर को मैं और कुलवंत टाऊन में शॉपिंग के लिए चले गए। टाऊन में बहुत भीड़ थी क्योंकि क्रिसमस की वजह से लोग पागलों की तरह स्टोरों में घूम रहे थे। उस समय टाऊन में दुकानें बहुत होती थीं। आज तो कुछ रिसैशन की वजह से और कुछ ऑन लाइन शॉपिंग की वजह से बहुत दुकानें बंद हो गई हैं। सारा दिन घूम कर हम घर आ गए। दूसरे दिन ग्रॉसरी के लिए चले गए और ट्रॉली ऊपर तक भर कर ले आये। बहुत दफा हम हंसते हैं कि पता नहीं क्रिसमस पे आ कर लोग इतने पागल क्यों हो जाते हैं, जब कि हम रोज़ उतनी ही खुराक खाते हैं। फ्रिज फ्रीज़र भर जाते हैं। गोरे लोग क्रिसमस डिनर और क्रिसमस पुडिंग की ही बात करते हैं, जो होता तो स्पेशल है लेकिन कितना खा लेंगे। तरह तरह की शराब, वाइन, लिकर और बीअर खरीद कर घर भर लेते हैं। कई गोरे तो क्रिसमस ईव के दिन ही शराब पीना शुरू कर देते हैं और नशे में लुटकते फिरते हैं और क्रिसमस के दिन सर पकड़ कर अधमुँए से हो जाते हैं। कुछ भी हो, रौनक बहुत होती है और रात को क्रिसमस की ख़ास लाइटों से टाऊन जग मग जग मग कर रहा होता है। बच्चों के खिलौनों से उन के कमरे भर जाते हैं लेकिन क्रिसमस के कुछ ही दिनों बाद इन खिलौनों की, किसी की टांग नहीं होती और किसी के हाथ नहीं होते। टाऊन में सेल शुरू हो जाती है और वोह ही चीज़ें आधी कीमत पर होतीं है और लोग ऐसे करते हैं जैसे लूट मची हो। कई बड़े स्टोरों में किसी ख़ास दिन सेल के बिल बोर्ड लग जाते हैं और कई लोग तो रात को ही लाइन में लग जाते हैं। यह नज़ारा हम तो टीवी पर ही देखते हैं और हम कभी नहीं गए।
यह क्रिसमस का त्योहार है तो ईसाइयों का लेकिन हम इंडियन पाकिस्तानी भी उतने ही उत्साह से मनाते हैं। बेछक हिन्दू हों या सिख, सभी घर में क्रिसमस ट्री सजाते हैं, बच्चों को सभ से ज़्यादा ख़ुशी होती है। मुझे याद है, जब हमारे बच्चे छोटे होते थे तो क्रिसमस से कुछ दिन पहले हम एक दिन के लिए उन को सुपर मार्किट ले जाते थे और सब से पहले उन को चॉकलेट और अन्य स्वीट्स के सैक्शन में ले जा कर कहते,” चक्क लो ,,,,,” और बच्चे टूट पड़ते थे और अपनी मन पसंद के चौकलेट ट्रौली में फैंकते जाते थे। उन को देख कर हम बहुत खुश होते थे और फिर वोह घर आ कर अपने अपने चौकलेट संभाल कर रख लेते थे। यह कुछ दिन ऐसे ही शॉपिंग करते गुज़र गए। क्रिसमस ईव को हम घर बैठे, टीवी देख रहे थे, मैं वाइन का एक ग्लास ले कर बैठा था। टीवी चल रहा था, उस समय ज़्यादा बीबीसी ही देखा करते थे। तभी निऊज़ फ्लैश आई, ” sunaami in indoneshia “, कुछ देर बाद फिर न्यूज़ आई कि समुन्दर में भू कंप आया है और बहुत बड़ी पानी की दीवार आगे बढ़ रही है। एक घंटे बाद फिल्म आणि शुरू हो गई और देखा कि समुन्दर में बीस पचीस फ़ीट ऊंची पानी की दीवार किनारे की ओर बढ़ रही है। जो लोग बीच पर हॉलिडे के लिए बैठे थे, सभी पानी में रूढ़ रहे हैं, बीच के कुर्सियां मेज़ और धीरे धीरे सभ दुकाने पानी के बहाव से टूट कर पानी में बह रही हैं, सैंकड़ों कारें पानी में तैर रही हैं और पानी आगे बढ़ता जा रहा है, अब बड़ी बड़ी बिल्डिंग्ज़ गिरने लगी हैं। देख देख कर हमारी साँसें रुकी हुई थीं।
इधर क्रिसमस का वक्त था और उधर जो गोरे लोग क्रिसमस मनाने के लिए दूसरे देशों को गए हुए थे, वोह पानी में बह रहे थे। तकलीफ तो सब लोगों को हो रही थी लेकिन इंग्लैंड में लोग क्रिसमस मना रहे थे, ऐसा त्योहार बंद तो किया नहीं जा सकता था लेकिन साथ साथ पल पल की खबर हम देख रहे थे। कुछ ही घंटों में यह सुनामी थाईलैंड, फिर शिरी लंका और इंडिया जा पहुंची । दूसरे दिन क्रिसमस के दिन तो ख़बरें सभी चैनलों पर आ रही थीं। इस सुनामी से दस से भी ज़्यादा देश प्रभावत हुए और इंडिया में इस से बहुत नुक्सान हुआ। इस से अढ़ाई लाख से ज़्यादा लोगों की मृतु हुई और दो लाख बेघर हुए। प्रॉपर्टी का जो नुक्सान हुआ, उस का तो अंदाज़ा लगाना ही मुश्किल है। इन की उस समय की वीडियो अब यू ट्यूब पे देखि जा सकती है। हर क्रिसमस को शाम के तीन बजे इंग्लैंड की महारानी का कौम के नाम सन्देश होता है। इस दफा राणी ने शोक जाहर किया। दूसरे दिन बॉक्सिंग डे भी ऐसे ही जश्न में बीत गया। शाम को बैठे बैठे मुझे गोवा के अंजुना बीच की याद आ गई और विचार आया कि हो ना हो जब मुझे वोह ऊंची लहर पानी में ले गई थी तो यह उस सुनामी की वजह से ही होगा जो अभी आई तो नहीं थी लेकिन कहते हैं ना coming events cast their shadows before । गोवा में सुनामी आई तो नहीं थी लेकिन मैं अभी तक यह ही सोचता हूँ कि यह गोवा की बड़ी लहर उस सुनामी का कारण ही होगी। मेरा यह वहम हो सकता है लेकिन जो मेरे साथ हुआ, मैं उस को इस सुनामी से ही जोड़ता हूँ।
एक बात मैं लिखनी भूल गया, इसी साल सितंबर में हमारे घर पोते जोश ने भी जनम लिया था जो अब बारह साल का हो चुक्का है। कुछ दिन यह सुनामी की ख़बरें आती रहीं और फिर ज़िन्दगी पहले की तरह चलने लगी। कुछ दिनों बाद ही रात को सोते समय मुझे बहुत सर्दी महसूस होने लगी, इतनी कि सारी रात कांपता रहा। दुसरी रात भी ऐसा ही हुआ और मैंने इलैक्ट्रिक ब्लैंकिट इस्तेमाल करनी शुरू कर दी। फिर मैं कैमिस्ट शॉप से थर्मामीटर ले आया। अजीब बात थी कि मेरे शरीर का तापमान बिलकुल ठीक था। ऐसा ही रोज़ रात को होता और मैं अपना टैम्प्रेचर चैक करता तो वोह बिलकुल सही होता। मेरी आई टैस्ट के लिए अपॉएंटमेंट लैटर आया हुआ था और एक दिन मैं बस पकड़ कर ऑप्टीशियन की दूकान में टाऊन जा पहुंचा। उस दिन स्नो पढ़ी हुई थी और ऊपर से फ्रॉस्ट पढ़ने से सड़कों पर बर्फ जम्मी हुई थी और सर्दी बहुत थी, शायद माइनस पांच छै सैलसीअस्स होगी। आँखें चैक करा के जब मैं बाहर आया तो मेरा शरीर एक दम जम सा गया और पैर उठाना मुश्किल हो रहा था। मुझे समझ नहीं आ रही थी कि यह किया हो रहा था क्योंकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। कुछ ही दूर गया तो मेरा एक पुराना क्लास फैलो हरिदत्त आता दिखाई दिया। कुछ देर उस से बातें कीं लेकिन मेरा शरीर ऐसा हो रहा था जैसे बर्फ बन गया हो। हरिदत्त से बातें करके बड़ी मुश्किल से बस स्टॉप की ओर जाने लगा। एक एक कदम चलना मुश्किल हो रहा था। बस स्टॉप पर पहुँच कर बस की इंतज़ार करने लगा। पांच मिंट बाद ही बस आ गई और बहुत ही मुश्किल से मैं बस में चढ़ा। पंदरां मिंट में घर आ गया। घर में सैंट्रल हीटिंग से काफी गर्मी थी। अब मुझे कुछ चैन आया और कुलवंत को चाय बनाने के लिए कहा। चाय पी कर राहत हुई और मैंने कुलवंत को आज का बिर्तान्त सुनाया। कुलवंत गुस्सा हो गई कि मैं फोन कर देता और वोह गाड़ी ले कर आ जाती।
बात गई आई हो गई और ज़िन्दगी पहले की तरह चलने लगी। रात को इलैक्ट्रिक ब्लैंकेट से बैड गर्म होती और रात बीत जाती। ऐसे ही गर्मियों के दिन आ गए। यूँ तो गर्मियां कहने को ही हैं क्योंकि इन गर्मियों में भी अगर पचीस डिग्री तापमान हो जाए तो कहते हैं, दिन अच्छा है। एक दिन मज़ेदार धुप थी और लॉन का घास काट कर बैंच पे बैठे थे कि कुलवंत कहने लगी कि मैं कुछ कार्ड बोर्ड तोड़ कर कूड़े के बिन में डाल दूँ। इन कार्ड बोर्डों में कोई इलैक्ट्रिक की चीज़ें खरीदी थीं। मैं इन को तोड़ने लगा। एक बॉक्स काफी बड़ा था। मैंने इस को अपने पैर से तोडना चाहा। जब जोर से मैंने पैर मारा तो मैं मुंह के भार गिर पढ़ा। मेरे नांक से खून निकलना शुरू हो गया। मेरे माथे से भी खून निकलने लगा। कुलवंत दौड़ कर आई। किया हुआ, किया हुआ बोलने लगी। फिर जल्दी से साफ़ कपडे ले कर आई और जख्म साफ़ किये। कुलवंत ने डाक्टर के पास जाने बोला तो मैंने इनकार कर दिया कि यह तो मामूली बात थी। इसी तरह एक दिन मैं ऐरन के साथ गार्डन में मस्ती कर रहा था, उस के साथ गार्डन में घास पर फ़ुटबाल खेल रहा था, जैसे ही मैंने एक किक्क मारी तो मैं उसी वक्त पीछे की ओर गिर गया। कुलवंत हंसने लगी। उठ कर मैं फिर खेलने लगा। एक दिन मैं गार्डन के पत्ते बगैरा डस्ट बिन में डाल रहा था, बिन भर गया। बिन के नीचे दो पहिये होते हैं। जैसे ही मैंने बिन धकेला, बिन आगे चले गया और मैं फिर गिर गया लेकिन कोई चोट नहीं आई। मैं क्यों गिर रहा हूँ, मैंने इस बारे में कुछ नहीं सोचा। इसी तरह एक दिन हम बिर्मिंघम गए, निंदी की मामी जी के घर उस के पोते का जनम दिन मनाया जा रहा था। गार्डन में टैंट लगा हुआ था, जिस में लंगर आदी का प्रबंध किया हुआ था। बहुत मेहमान आये हुए थे और मैं एक रिश्तेदार के साथ हंस हंस बातें कर रहा था। मैंने टॉयलेट जाना था। मैं उन को अभी आया कह कर टॉयलेट की तरफ रवाना हो गया। यह घर का एरिया गार्डन से कुछ ऊंचा था और पांच छै सीड़ीओं के स्टैप थे। सीढ़ियों के दोनों तरफ पकड़ने के लिए कुछ नहीं था। जैसे ही मैं चढ़ा, मुझे चढ़ने में कुछ अजीब लगा और दो स्टैप चढ़ कर मैं गिर गया। संदीप देख के दौड़ा आया और मुझे पकड़ कर ऊपर ले आया। कुलवंत ने कुछ टिशू पेपर मुझे दिए और मैंने माथे का खून साफ़ किया और टॉयलेट चले गया। जब बाहर आया तो संदीप फ्रिज से एक प्लास्टिक के बैग में आइस डाल कर ले आया और मेरे माथे पर बैग रख दिया। मेरा नांक और माथा सूज गया था । गाड़ी में बैठ कर हम वापस घर आ गए। यह जखम भी धीरे धीरे ठीक हो गए लेकिन अभी तक मुझे कोई इल्म नहीं था कि कुछ गलत हो रहा है।
मेरे शरीर में कोई तब्दीली तो आ रही थी लेकिन मैं इस से बेखबर पहले की तरह ज़िन्दगी जी रहा था। शायद अगस्त सितंबर का महीना होगा। रविवार के दिन हम गुरदुआरे में गए। सभी जानते ही थे और लंगर खाने में कुर्सियों पर बैठे बातें कर रहे थे। एक मेरा रिश्तेदार दोस्त भी मेरे पास की सीट पर बैठा था। इस दोस्त का नाम तो निर्मल सिंह है लेकिन हम उन को कुछ ढीला बोलने की वजह से स्लो सिंह बोलते थे। कुछ देर बाद वोह बोला, ” भमरा ! तेरी आवाज़ को किया हुआ है, पहले जैसी नहीं “, मैंने हंस कर जवाब दिया कि उस को वहम था। दिन जैसे जैसे बीतते गए, मैं इन बातों को भूल ही गया। सर्दियां आ गईं। हम ने एक दूसरे टाऊन में एक शादी समारोह में जाना था। उस दिन भी बर्फ पढ़ी हुई थी। गुरदुआरे में शादी की रसम होने के बाद एक हाल में खाने का प्रबंध था। कार पार्क में गाड़ी खड़ी करके जब हम हाल की तरफ जाने लगे तो मेरी टांगें अकड़ने लगीं। हाल में पहुँचने में कोई दस मिंट लग गए लेकिन जाते जाते मेरा शरीर अकड़ सा गया था। कुछ दोस्तों के साथ मैं और संदीप एक टेबल पर बैठे थे कि एक दोस्त बोला,” भमरा ! तेरी आवाज़ को किया हुआ ?” , कुछ नहीं कह कर हम हंसने लगे लेकिन अब मुझे कुछ संदेह हुआ कि यह जो बार बार लोग मुझे मेरी आवाज़ के बारे में पूछ रहे हैं, जरूर कुछ होगा। शादी के बाद घर को आते वक्त मैंने अब कुलवंत से पुछा कि मेरी आवाज़ में कोई फर्क है ! तो कुलवंत बोली कि कुछ है लेकिन कोई ख़ास नहीं है। संदीप ने भी यही बोला। इस के बाद जब और लोग भी आवाज़ के बारे में पूछने लगे तो मैंने भी सोच लिया कि मुझे डाक्टर के पास जाना चाहिए और मैंने डाक्टर की सर्जरी में टेलीफोन करके डाक्टर से अपॉएंटमेंट ले ली। चलता. . . . . . . .