नव वर्ष- दोहे
पुराना कलैंडर झाँक रहा है, नए वर्ष की छाया को
कितना मुश्किल है बंधु, छोड़ कर जाना माया को।
नए कलैंडर के चेहरे पर, अभिमानी मुस्कान है
वक़्त को गुजर जाना है, यह विधि का विधान है।
धूल उड़ाते क़दमों से समय जा रहा भाग कर
जैसे कंधे को धकियाती बंदूक गोली दाग कर।
रेत के महल बना-बना खुश होने का ढोंग किया
क्षण भर की देरी में ही जल लहरों ने रौंद दिया
तकदीर के मोती पल रहे है, समय समान सीप में
बीते कल की बाती जल चुकी, घी रह गया दीप में।
कितने मंजर बदल चुके है, काल चक्र के वार से
वक़्त सिखाता है सब को, मिल जुल रहना प्यार से।