विद्वान हमारी प्रार्थना को सुनकर हमें विद्यादान देकर सुखी करें
ओ३म्
यजुर्वेद के इकत्तीसवें अध्याय का प्रथम मन्त्रः
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युरा चके।।
पदार्थः हे (वरुण) उत्तम विद्वान ! (अवस्युः) अपनी रक्षा व सुरक्षा की इच्छा करने वाला मैं (इमम्, त्वाम्) आपको (आ, चके) चाहता हूं। आप (मे) मेरी (हवम्) स्तुति को (श्रुधि) सुनें (च) और (अद्य) आज ही मुझ को (मृडय) सुखी करें।
भावार्थः सब विद्या की इच्छा रखने वाले पुरुषों को चाहिये कि क्रम से उपदेश करने वाले बड़े विद्वान् व विद्वानों की इच्छा करें। वह विद्वान् विद्यार्थियों के स्तुति वा स्वाध्याय को सुनें और उनकी उत्तम परीक्षा करके विद्यादान से सब को आनन्दित करे।
(सम्पादित अर्थ)
सुख चाहने वाले मनुष्यों को यजुर्वेद के इस मन्त्र में शिक्षा दी गई है कि वह उत्तम विद्वानों से विद्यादान देने के लिए उनकी स्तुति व प्रार्थना करें। विद्वानों का भी कर्तव्य है कि वह स्तुति करने वाले विद्यार्थियों की परीक्षा करके उन्हें विद्यादान देकर आनन्द से तृप्त कर दें। बिना सत्य विद्या को प्राप्त किये मनुष्य सुखी नहीं हो सकता। इसके लिए उसे विद्वानों की शरण में जाकर उनकी स्तुति व प्रार्थना करना आवश्यक है।
–मनमोहन कुमार आर्य