कविता : व्यंगम व्यंग
[१]
व्यंगम व्यंग ऊँचीं तरंग गिरगिट जैसा रंग |
खाएँ पान बनारसी, पिए हैं जैसे भंग |
[२]
सावन को होली कहें- डार्लिंग बोले नारि |
कलियुग के मेहमान है , चश्मा चैती वारि |
[३]
मुझे बना दो चापलूस, मै भी लिख दूँ दो कविता |
थार मरुस्थल की रेतों में, स्वप्न बहे जल सरिता |
— राजकिशोर मिश्र राज