ह्रदय से निकलती कविता
छ्न्द के फन्द में पड़कर,
सहज कविता भुलाते क्यों ?
ह्रदय से जब निकलती है,
फर्श से अर्श बनकर कविता
निराला छ्न्द छेड़ो तुम
अवनि जल से भरी सरिता
गगन में चाँद दिखता है,
धरा धुर प्रीति में सविता
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
छ्न्द के फन्द में पड़कर,
सहज कविता भुलाते क्यों ?
ह्रदय से जब निकलती है,
फर्श से अर्श बनकर कविता
निराला छ्न्द छेड़ो तुम
अवनि जल से भरी सरिता
गगन में चाँद दिखता है,
धरा धुर प्रीति में सविता
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’