गज़ल
परेशां इसलिए हूँ कि परेशानी नहीं जाती,
बचपन तो गया लेकिन ये नादानी नहीं जाती,
कसम खाए करे तौबा चाहे चोर चोरी से,
जब नीयत में आ जाए बेईमानी नहीं जाती,
बदल डाला मेरे हालात ने मुझको कुछ इस तरह,
मेरी सूरत भी अब मुझसे तो पहचानी नहीं जाती,
थपेड़े वक्त के खाकर भी ना टूटी अकड़ उनकी,
हुकूमत तो गई लेकिन हुक्मरानी नहीं जाती,
उस घर को तबाही से बचा सकता नहीं कोई,
बुजुर्गों की जहां राय कोई मानी नहीं जाती,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।