ग़ज़ल २
तन्हाईयों में अक्सर खुद में खुद को ढूंढा करते हैं
सुन अपना पता हम अपने दिल से पूछा करते हैं
जाने क्या करता है मन आसमान की सरहद पर
खामोश निगाहों से हम इस मन को देखा करते हैं
उड़ता जाता है मन ये मन्जिल का कोई पता नहीँ
किस मोड पे ठहरेगा पागल यह हर पल सोचा करते हैं
देखा है हमने चाँद हसीं ख्वाबों के दरीचे से आकर
जगती आँखों में ख्वाब कई अब मेरा पीछा करते हैं
कहीं डगर भटक न जाए मन ये दुनिया तो है बेगानी
अपनाकर भी अक्सर लोग अपनों से धोखा करते हैं
कोई साथ नहीं देता है क्या अपना क्या बेगाना
हंसकर मत मिलना ‘जानिब’ दिल को रोका करते हैं
“जानिब”