भातृ-प्रेम
बदला-बदला सा
दिख रहा है सबकुछ,
जो कभी करीब रहा करता था,
भाई बनकर,
वो भी चचेरा भाई सगा भाई जैसा,
सर्वस्व लूटा दिया,
बचा सिर्फ़ बुद्धिहीन बालक का
भविष्य,
जो उस भाई को असहनीय लगा,
छोड़ दिया उसे,
कसूर था,
सिर्फ चचेरे भाई का साथ देना,
गरीबी को दूर करना,
हर बात को ईमान्दारी पूर्वक मानना,
या कसूर था,
पैसे का बढना,
अपने पैर पर खड़ा होना,
आज वो रिश्ता जो मिसाल बना था,
वो टूट गया,
बिखर गया ,
नहीं रहा कोई मीठास
नहीं रही मधुर वाणी
नहीं रहा भातृ प्रेम,
दे गयी सीख कभी भी
किसी भी भाई पर,
चाहे वो चचेरा हो या सगा
विश्वास नहीं करना!!
रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’ /08-08-2016