कविता

ज़िंदगी गुनगुना रही है

ज़िंदगी फिर कुछ गुनगुना रही है मेरे कानों में,
पर दुनिया के शोर में मुझे कुछ सुनाई नहीं देता,

कितनी खूबसूरत है यह खुदा की जन्नत सी दुनिया
पर ज़िम्मेवारियों के बोझ तले, कुछ सुझाई नहीं देता ,

वैसे तो अँधा भी कैसे तैसे ढून्ढ लेता है अपनी डगर,
पर यहाँ तो आँख वालों को भी कुछ दिखाई नहीं देता,

वैसे अपनों के पास ही तो होती है अपने हर दर्द की दवा,
पर बिना मतलब यहाँ अपना भी कोई दवाई नहीं देता.

सब कुछ देख लेते हैं सब और जानते हैं सबकी हकीकत,
पर सच की ज़रुरत हो , तो कोई शख्स गवाही नहीं देता,

अपने ही लिए लोग फैलाते है अपनी झोली खुदा के आगे ,
दूसरों के दुःख दर्द जान कर भी की कोई दुहाई नहीं देता ,

जो कुछ भी दरकार हो अपने लिए, खुद खुदा से मांग लो ,
खुदा सब कुछ देता है,पर किसी को अपनी खुदाई नहीं देता.

22/12/2016 ————जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845