दो मुक्तक
खुद को जनसेवक कहते पर नोटों के भिखमंगे हैं
स्वार्थ के दलदल में डूबे है बतलाते हैं चंगे हैं
सबने अपना काला धन देखो घोषित कर मुक्त किया?
अजब गजब है राजनीति का यह हमाम सब नंगे हैं
बच्चा स्वस्थ हुआ है पैदा रंग भंग ना हो जाए
गजब विवादों में फंस कर वह खुद मलंग ना हो जाए
अगर नहीं है ज्ञान पढ़ें इतिहास जरा पन्ने पलटे
नाम जुबां पर दुनिया की तैमूर लंग ना हो जाए
— मनोज श्रीवास्तव