निर्झर नीर प्रणय करती है
प्रकृति यहाँ चिंतन करती है
निर्झर नीर प्रणय करती है
जीवन का अहसास कराती
उपवन संग सरिता मदमाती
तेरा मधुर स्पर्श व्यथा हर
भर देता नव किसलित उमंग
अलि का गुंजन रजनी आँचल
चन्द्र कौमुदी रत्नाकर हिय
कुसुमित लहरें धवल हार बन
देती प्रणय निमंत्रण
मै क्या जानूँ मेघ घटा को
सावन वरण किया जो
छ्न्द निराला गज़मुक्ता गुण
महके मृगया नाभि
विषधर करे उजाला पूनम
युग युगांत रवि रात
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’