ग़ज़ल – क्या करूँगा मौत को पहचान कर
मौत का जारी कोई फरमान कर ।
हो सके तो ऐ ख़ुदा एहसान कर ।।
जिंदगी तो काट दी मुश्किल में अब।
रास्ता जन्नत का तो आसान कर ।।
जी रहा है आदमी किस्तों में अब ।
धड़कनो की बन्द यह दूकान कर ।।
टूट जाती हैं उमीदें सांस की।
खत्म तू बाकी बचा अरमान कर ।।
हसरतें सब बेवफा सी हो गईं ।
आसुओं के दौर से अनजान कर ।।
हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।
है गरीबी से मेरा रिश्ता बहुत ।
बेबसी का मत मेरी अपमान कर ।।
फूट कर वो रात भर रोता रहा ।
क्यूँ बहुत खामोश है सब जानकर ।।
जब अँधेरे ही मेरी किस्मत में हैं ।
रौशनी से मत खड़ा तूफ़ान कर ।।
— नवीन