गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – क्या करूँगा मौत को पहचान कर

मौत का जारी कोई फरमान कर ।
हो सके तो ऐ ख़ुदा एहसान कर ।।

जिंदगी तो काट दी मुश्किल में अब।
रास्ता जन्नत का तो आसान कर ।।

जी रहा है आदमी किस्तों में अब ।
धड़कनो की बन्द यह दूकान कर ।।

टूट जाती हैं उमीदें सांस की।
खत्म तू बाकी बचा अरमान कर ।।

हसरतें सब बेवफा सी हो गईं ।
आसुओं के दौर से अनजान कर ।।

हार जाता है यहां हर आदमी।
क्या करूँगा मौत को पहचान कर ।।

है गरीबी से मेरा रिश्ता बहुत ।
बेबसी का मत मेरी अपमान कर ।।

फूट कर वो रात भर रोता रहा ।
क्यूँ बहुत खामोश है सब जानकर ।।

जब अँधेरे ही मेरी किस्मत में हैं ।
रौशनी से मत खड़ा तूफ़ान कर ।।

— नवीन

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com