कविता

।। दलित दलितहि लखै ।।

किसने देखा मुझे..?
फटे-चीथड़ों में
मनु-मरूभूमि में
अधनंगे भटकता था मैं
रेगिस्तान की रेत चहुँओर
कड़ी धूप में
भूख और प्यास के दरद में
जीवन मरर्म की तलाश
आग की ज्वाला रही
हरपल मेरे अंदर।

किसने पहचाना मुझे.?
आधी रात में अपलक बैठे
दलित वेदना को ढोनेवाले
तेज से तेज चलनेवाले
पीड़ामय जग के परिचायक
दलित अस्मिता का चेहरा दिखाते
वे मुझे देख रहे हैं
आँसू पोंछने का कहते..
भाई का संबोधन करते..
सिर पर हाथ फेरते
स्वर में स्वर मिलाते
धीरज का पाँव देते..
युग-युगों के दलित अन्याय पर
आवाज़ उठाने का
आक्रोश का स्वर मुझे देते..
मुश्किलों को सामना करने का
मानवता के
उत्तुंग शिखर का राह दिखाते
वे हिमायती हैं।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।