मैं सृष्टि हूं
जब तक तुमने मुझे अपना समझा और माना, तुम भी सुखी थे, मैं भी सुखी थी. तुम मेरी पीड़ा समझते थे, मुझे दुलारते थे, पुचकारते थे, मेरे रिसते घावों के लिए मरहम बनते थे. अब सब बदल गया है. आज तुम्हें अपने बच्चों को दुलारने-पुचकारने-सहलाने का समय ही नहीं मिलता, मेरे लिए समय कहां से निकालोगे? तुम्हारी हालत भी मुझसे कुछ अच्छी नहीं है. यह मत समझना, कि मैं बदला ले रही हूं. अपने सृजन के साथ ऐसा कैसे कर सकती है? यह तो क्रिया की प्रतिक्रिया होती है. ‘कदली सीप भुजंग’ वाली बात तो तुमने सुनी ही होगी. स्वाति नक्षत्र की एक बूंद इनको कपूर-मोती-विष बना सकती है. मोती से याद आया. तुमने ही लिखा था-
”तबियत से काम करो तो तबियत सुधर जाएगी,
बनाने वाले स्मॉग से हीरे भी बना लेते हैं.”
मैं सृष्टि हूं. सचमुच चीन ने स्मॉग से हीरे भी बना लिए हैं. तुम भी ऐसा कर सकते हो. मेरे पेड़ों को मत काटो, कचरे को मत जलाओ, जगह-जगह कचरा मत फेंको, कार का प्रयोग कम करो, फैक्टरियों का रासायनिक कचरा नदियों में मत जाने दो. तुम मेरे रक्षक बनो, मैं तो तुम्हारी सृजक-रक्षक-पोषक हूं ही और रहूंगी. सदा खुशहाल रहो. मैं सृष्टि हूं. सृष्टि का मतलब समझते हो न! हर चीज़ की, चर-अचर की, कण-कण की सर्जक.