कविता

झलक तुम्हारी…..

बेचैन आँखों को तलाश है

तुम्हारी एक झलक पाने की

निहार रही हूँ राहे कब से

तुम्हारे लौट आने की

दूर जाकर टिकी है निगाहें

तुम्हें ढूँढ रही

क्या देखूँ कुछ और कि

तुम्हारे सिवा कुछ और

नज़र आता नहीं

बहुत हो गया इन्तजार

आँखें भी है बुझी बुझी

आ जाओ अब पास मेरे

कि तन्हा अब जिया जाता नहीं।

*बबली सिन्हा

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