मुक्तक/दोहा “दोहा” *महातम मिश्र 29/12/2016 “दोहा” भौंरा घूमे बाग में, खिलते डाली फूल कुदरत की ये वानगी, माली के अनुकूल॥ उड़ने दो इनको सखे, पलती भीतर चाह पंखुड़ियों में कैद ये, इनके मुँह कब आह॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी