बेवजह मत आजमा कर देखिये
चाँद को, महफ़िल में आकर देखिये ।
इक ग़ज़ल मेरी सुनाकर देखिये ।।
गर मिटानी हैं जिगर की ख्वाहिशें ।
इस तरह मत छुप छुपाकर देखिये ।।
ये रकीबों का नगर है मान लें।
इक रपट मेरी लिखाकर देखिये ।।
हुस्न पर पर्दा मुनासिब है नहीं ।
बज़्म में चिलमन उठाकर देखिये ।।
क्यों फ़िदा हैं लोग शायद कुछ तो है ।
आइने में हुस्न जाकर देखिये ।।
हैं हवाएँ गर्म कुछ् बेचैन मन ।
तिश्नगी थोड़ी बुझा कर देखिये ।।
आप के कहने से तौबा कर लिया ।
मैकदा से रूह लाकर देखिये ।।
फेसबुक से यूँ हटाना बस में था ।
अब जरा दिल से हटाकर देखिये ।।
सिर्फ इल्जामो का चलता कारवाँ ।
फर्ज कुछ अपना निभाकर देखिये ।।
आप मेरे इश्क़ के काबिल तो हैं ।
हो सके तो दिल मिलाकर देखिये ।।
दीन हो जाए न ये बर्बाद अब ।
मत हमें नज़रें झुकाकर देखिये ।।
कत्ल होने का इरादा था मेरा ।
बेवजह मत आजमाकर देखिये ।।
धड़कने देंगी गवाही फ़िक्र की ।
खत मेरा दिल से लगाकर देखिये ।।
जख़्म का होता कहाँ मुझपर असर ।
तीर जितने हों चलाकर देखिये ।।
ताक में बैठे सभी ओले यहाँ ।
दम अगर है सर मुड़ाकर देखिये ।।
दर्द ये काफूर हो जाए मिरा ।
कुछ रहम में मुस्कुरा कर देखिये ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी