गीतिका/ग़ज़ल

बेवजह मत आजमा कर देखिये

चाँद को, महफ़िल में आकर देखिये ।
इक ग़ज़ल मेरी सुनाकर देखिये ।।

गर मिटानी हैं जिगर की ख्वाहिशें ।
इस तरह मत छुप छुपाकर देखिये ।।

ये रकीबों का नगर है मान लें।
इक रपट मेरी लिखाकर देखिये ।।

हुस्न पर पर्दा मुनासिब है नहीं ।
बज़्म में चिलमन उठाकर देखिये ।।

क्यों फ़िदा हैं लोग शायद कुछ तो है ।
आइने में हुस्न जाकर देखिये ।।

हैं हवाएँ गर्म कुछ् बेचैन मन ।
तिश्नगी थोड़ी बुझा कर देखिये ।।

आप के कहने से तौबा कर लिया ।
मैकदा से रूह लाकर देखिये ।।

फेसबुक से यूँ हटाना बस में था ।
अब जरा दिल से हटाकर देखिये ।।

सिर्फ इल्जामो का चलता कारवाँ ।
फर्ज कुछ अपना निभाकर देखिये ।।

आप मेरे इश्क़ के काबिल तो हैं ।
हो सके तो दिल मिलाकर देखिये ।।

दीन हो जाए न ये बर्बाद अब ।
मत हमें नज़रें झुकाकर देखिये ।।

कत्ल होने का इरादा था मेरा ।
बेवजह मत आजमाकर देखिये ।।

धड़कने देंगी गवाही फ़िक्र की ।
खत मेरा दिल से लगाकर देखिये ।।

जख़्म का होता कहाँ मुझपर असर ।
तीर जितने हों चलाकर देखिये ।।

ताक में बैठे सभी ओले यहाँ ।
दम अगर है सर मुड़ाकर देखिये ।।

दर्द ये काफूर हो जाए मिरा ।
कुछ रहम में मुस्कुरा कर देखिये ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com