गीतिका/ग़ज़ल

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया

मिल गया है आपका वह ख़त पुराना शुक्रिया ।
याद आया फिर  मुझे  गुज़रा ज़माना शुक्रिया ।।

ढल गई चेहरे की रौनक ढल गया वह चाँद भी ।।
हुस्न का  अब होश में आकर  बुलाना शुक्रिया ।।

कुछ अना के साथ में नज़रों की वो तीखी क़सिस।
बाद  मुद्दत  के  तेरा  यह  दिल जलाना ,शुक्रिया ।।

मुस्तहक़ थी आरजू पर हो सकी कब मुतमइन ।
वक्त   पर  आवाज  देकर  यूँ बुलाना  शुक्रिया ।।

जिक्र कर लेना  मुनासिब  है नहीं  इस दौर  में ।
फिर गमे उल्फ़त का देखो लौट आना, शुक्रिया ।।

यह  गुलाबी  पंखुड़ी   खत  में मिली  सूखी  हुई ।
दे दिया है इश्क का फिर  से  फ़साना  शुक्रिया ।।

थी कहीं  मजबूरियां  तो  सच  बता देती  उसे ।
आसुओं का सुन लिया  सारा  तराना शुक्रिया ।।

चुप रहा क़ातिल की  बस्ती  में सराफत देखिये ।
गैर  के  पहलू  में जाकर  मुस्कुराना   शुक्रिया ।।

नवीन

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]