सामाजिक

महिला सुरक्षा व संवेदनशीलता

महिला सुरक्षा व संवेदनशीलता

16 दिसम्बर, भारतीय इतिहास का एक विभत्स दिन । इसी तारीख को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले देश की राष्ट्रीय राजधानी को कुछ आदमखोर दरिदों ने दागदार कर दिया । ये घटना मानव सभ्यता के अब तक की सबसे क्रूर घटनाओं में से एक थी । जब एक छात्रा के साथ चंद बहसी दरिंदों ने न सिर्फ सामूहिक बलात्कार ही किया बल्कि लोहे के छर्रों से उसे लहूलुहान कर उसकी अंतरी तक निकाल ली । घटना के कुछ समय बाद जैसे ही राष्ट्रीय मीडिया में इस वारदात की खबर आई समुचा देश गुस्से से उबाल खाने लगा । लोगों की आंखों में बेइंतहा गुस्सा था । जनता के हावभाव को देख उस दिन ऐसा प्रतित हो रहा था जैसे वर्षो से सोया मेरा देश सायद अब जागने को है ।

पर निर्भया कांड के बाद भी एक के बाद एक लगातार घटती महिला अत्याचार व यौन शोषन की घटनाओं ने हमारी संवेदनहीनता को जग जाहिर कर दिया । और इसके उदाहरण के तौर पर हम हाल ही में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में घटे इंसानी दरिदों के नंगे नाच का उल्लेख कर सकते हैं कि किस तरह सरे बाजार लोगों की आंखों के सामने एक महिला के साथ बदसलूकी की गई और फिर उसे मारा-पीटा भी गया पर वहीं भीड़ के तौर पे खड़े लोग बस नपुंसकों की तरह हाथ पे हाथ धरे तमासा देखते रहें । वहां खड़े किसी ने भी इस अत्याचार व अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाई और ना ही किसी ने गुंडों को रोकने की कोशिश की ।

इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में आते ही लोगों में मैनपुरी की जनता के प्रति घृणाभाव उत्पन्न होने लगी । इस घटना के बाद लोगों का रोष गुंडों से अधिक वहां खड़े संवेदनहीन भीड़ के प्रति था; जो पुरे वारदात के दौरान असंवेदनशील बनी रही ।

वहीं पिछले दिनों अखबारों में छपी एक और रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुछ लोगों ने एक महिला की अस्मत सिर्फ इसलिए लूट ली क्योंकि उसने नक्सलपंथ को अपनाने से मना कर दिया था ।

इसतरह देश में प्रतिदिन घट रहीं महिला अत्याचार की घटनाओं ने अब इंसान के तौर पर हम जीवित प्राणीयों को कुंठित करना आरंभ कर दिया है । हमारे हृदय को कचोटने लगी हैं ।

आज के इस २१वीं शताब्दी के दौर में भी मर्दोद्वारा महिलाओं को भोग की वस्तु समझा जाना मनुष्य जाति पे एक कलंक समान है । जिसके लिए कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम सभी जिम्मेद्दार हैं । मनुष्य के रूप में सबसे बुद्धिमान प्राणी का ताज पहनकर हमने जिस तरह एक पुरूष प्रधान समाज का निर्माण किया है कहीं ना कहीं वही सभी समस्यायों की जड़ है । क्योंकि पुरूष प्रधान समाज की आड़ में महिलाओं को कम मर्यादा दिया जाना और उन्हे कमजोर समझना ही सभी महिला अपराधों की मुख्य वजह है ।

और अगर महिलाओं की सुरक्षा पे गौर फरमाया जाए तो हम देखेंगे कि आज महिलाएं इस समाज में स्कुल,कॉलेज,सिनेमा,रेस्त्रां,बस,रेल,आफिस, यहां तक की मंदिर व देवालयों में भी सुरक्षित नहीं हैं । आज भी घर से बाहर कदम रखते ही उन्हे लोगों की चुभती-चीरती नजरों का सामना करना पड़ता है । कहीं कहीं तो उन्हे छेड़छाड़ व अश्लील भाषा तक झेलनी पड़ती है । जो खुदको सभ्य कहलाने वाले मानव समाज को नंगा करने के लिए काफी है । और अब हमें इन सबसे आगे निकलना होगा । समाज में महिलाओं को समान अधिकार व सम्मान दिलाना होगा । तब जाकर ए देश सही अर्थों में विकसित राष्ट्र बन पाएगा ।

और अगर हम वास्तव में चाहते हैं कि हमारे समाज में बेटियों को भी बेटों के बराबर का अधिकार मिले तो इसके लिए सबसे पहले हमें स्वयं को बदलना होगा । इस खोखले समाज के उसूलों को बदलना होगा ।

और अगर हम सच्चे हृदय से महिलाओं के सर्वांगीण विकाश की बात करते हैं तो हमें चाहिए कि अब स्कुल और कॉलेजों में बच्चों को बाकी के विषयों के साथ ही महिला सशक्तिकरण का एक पाठ भी पढ़ाया जाना अनिवार्य किया जाए । बच्चों के पाठ्य पुस्तकों में छोटे कक्षों से ही महिलाओं के पारिवारिक व सामाजिक अवदानों तथा संघर्षों का चित्रण किया जाए और उन्हे कच्ची उम्र से ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाए । हमें बचपन से ही अपने बच्चों को खासकर बेटों को एक आदर्श नागरिक (आदर्श पूरूष) के रूप में प्रतिष्ठीत करने की प्रक्रिया आरम्भ कर देनी चाहिए । तब जाकर हमारी बहुं-बेटियां समाज में सम्मान के साथ जी पाएंगी ।

और इस लक्ष्य की पूर्ती के लिए हमारी कोशिश होनी चाहिए कि समाज में फैले विभिन्न धर्मों को भी सामाजिक बदलाव की इस कड़ी में एक माध्यम बनाया जा सके। जिससे समाज में एक वृह्तर बदलाव आए । और यह समय की मांग है कि अब बच्चोंद्वारा अपने अदृष्य ईष्ट व देवी-देवताओं के साथ ही त्याग की साक्षात मुरत स्वरूपा महिलाओं का सम्मान करना भी सिखाया जाए । बच्चों को ईसा मसीह के सामने सिर झुकाना सीखाने के साथ ही स्त्री का सम्मान करना भी सीखाना अनिवार्य है । अल्लाह का सजदा करते हुए उनके बनाए सबसे खास रहमत के सम्मान व सुरक्षा की शिक्षा देने की भी जरूरत है । क्योंकि जब हम स्वयं महिलाओं का सम्मान करेंगे और अपने बच्चों को भी हम महिलाओं का सम्मान करना सीखाएंगे तब जाकर कहीं हमारे घर व समाज की औरतें खुदको सुरक्षित महसूस करेंगी ।

हमें समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की जरूरत है । और आज की यह शदी महिलाओं को समर्पित है । आज जरा सा समर्थन मिलते ही शीशे में बंद लड़कियां आसमानों को चिरते हुए सितारों को चुमने का हुनर पा लेती हैं और अपने मेहनत व लगन से देश व समाज का नाम रौशन कर रही हैं । आज भारत की बेटियां भी लड़कों से आगे निकलकर खेल, राजनीति,साहित्य,सिनेमा,व्यवसाय हर एक क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए देश को सम्मान दिला रहीं हैं ।

ऐसे में आए दिन हो रहे यौनशोसन की घटनाएं लड़कों के विकृत मानसिकता को दर्शाती हैं । जो समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है । और इन सबसे मुक्ति पाने के लिए अति शीघ्र महिलाओं से जुड़े कानुनों को लेकर जागृती लाने की जरूरत है । जिससे महिलाओं को उनके अधिकारों का और उनसे जुड़े कानुनों का सटीक ज्ञान मिल सके और साथ ही महिलाओं को अपने विरूद्ध हो रहे अपराधों के शिकायत का अधिक सुलभ अवसर भी प्राप्त होना चाहिए तथा उनके द्वारा दायर शिकायत की स्थिति भी सार्वजनिक होनी चाहिए । जिससे महिला को लेकर बनाए गए कानुनों के आनुपालन में अधिक पारदर्शिता लाई जा सके जिससे देश की बहु-बेटियां देश के हर कोने में खुदको पुर्णतः सुरक्षित महसुस करें ।

मुकेश सिंह
सिलापथार, असम
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मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl