कविता

…..बस निर्भया

…..बस निर्भया

भूल गए वो निर्भया को
हुई वह बात पुरानी ।
अश्क की धारा बही है यूं
है करूण बड़ी ये कहानी ।

जुल्म-सितम की हुई है इंतहा
फूलों सी वो मसल दी गई ।
देवासन भी डोला है तब
जब-जब अबला जो कोई कुचल दी गई ।

बिन इजाजत छुआ किसीने
सारी मर्यादा को लांघा है ।
अपने पापों से कलंकित कर
नर्क की सुली पर उसे टांगा है ।

मौन बैठे हुए हैं सब
जानें किस भय और इंतजार में ?
यहां रोज लूट रही है अबला
चंद पागलों के व्यभिचार में ।

समाज की कुरीतियों ने भी
अजब सितम ढाया है ।
जो पहले से घायल बैठी थी
उसी पे दर्द का बादल छाया है ।

जिसने किया है दोष
उसको कुछ न कहते हैं ।
सच को बनाकर झूठ
वे आराम से जग में रहते हैं ।

जिसकी खुशी को लूटा है
सपनें जिसके तारतार हुए ।
दोषी बन जी रही है वो
आंखों से जिसके आंसुओं के बौछार हुए ।

तुम्हारी हर एक चीख का
हिसाब सबको देना होगा ।
ना बदला समाज का नजरिया जो
तुम्हे खुद चंडी का रूप लेना होगा ।

खुदखुशी का पथ छोड़कर
तुम्हे खुद को साबित करना है ।
बिखरे सपनों को जोड़कर
राज समाज पे तुम्हे करना है ।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम
9706838045⇔

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl