कविता

चाह

  • चाह

राह में पड़ा एक कंकड़ हूं
मुझे न तू शंकर बना ।
न मार ठोकर इधर-उधर तू
मुझे जोर तू चल एक बंकर बना ।
बंकर में भी जो लग जाउंगा
अपने देश के काम मैं आउंगा ।
गर्व से छाती चौड़ाकर
भारत की जयकार ही गाऊंगा ।
सह लुंगा गोलीयों की धार
झेलुं बारुदों का वार ।
‘मां’ सलामत रहे एकएक जवान तेरा
तो समझुं जीवन मेरा हुआ साकार ।
कहीं बंकर के काम जो न आ सका
तो सीमा पे मुझे तुम बिछा देना ।
कदमों को उनके रोकुंगा वहीं
बस इस काम मुझे तुम लगा लेना ।
जो सीमा पे रख ना पाओ मुझे तुम
तो उझाल मुझे उस पार पिठा देना ।
उन्हे रक्तरंजीत मैं कर जाउंगा
मुझे हथियार अपना तुम बना लेना ।।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम
09706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl