कविता : पापा
मेरे नन्हें से हाथों ने बड़ी जोर से थामा था
लगता था मेरी मुट्ठी में तब सारा जमाना था
बाजार की भीड़ में भी चलते चले जाना था
पसंद की हर चीज को बस थैले में जाना था
कोई बड़ी नाली पड़े या रास्ता टेढ़ा मेढ़ा पड़े
पापा तेरी बाहों के पुल हर पल मेरे साथ रहे
वो मजबूत ऊँगली मेरे बचपन का सहारा था
तेरे लाठी बन सकूँ बस यही ख्वाब हमारा था