कविता

महक

अब न ठिठुरो,फैला लो बाहें जागो, प्रकृति अपनी बर्फ की चादर समेट फैला रही है नई ऊष्मा और प्रकाश, जागकर देखो चारों ओर, नई सुबह नए रंग,नई उमंग, पीत प्रकाश छिटक दिया हो जैसे, सरसों के खेतों में आमों में नव कालिकाएं महक उठीं हैं, और वो महक है आने वाले उन फलों की जो,स्वाद […]

कविता

साथ

कितनी दूर निकल आए हम चलते चलते मंजिलें कुछ नई हैं ,रास्ते भी एक दिन था जब देखा करते थे राहें तुम्हारी आज तुम ही बन गए हो राहें मेरी यही तो चाहा था सदा कि हम साथ रहें हर कदम,हर रोड़ा, बन जाती है सुनहरी छांव जब साथ होते हो तुम रास्ते के पत्थरों […]

कविता

नव उल्लास

धवल हिमशिखरों पर फिर दिनकर ने प्रात जगाया है नव रश्मि से आलोकित हो एक नया सवेरा आया है कलिकाओं के मुंदे नयन हैं पर पुष्प आज इतराया है तुहिन की नन्हीं बूंदों ने तरु का हर पल्लव नहलाया है धूमिल स्वप्नों को पलकों पर फिर से आज सजाया है नव वर्ष की मंगल बेला […]

कविता

अछूता

कब हुआ होगा पहली बार ऐसा जब अछूत कहलाया,स्त्री का स्त्रीत्व वही स्त्रीत्व जिससे जन्मता है पुरूष भी… फिर क्यों नहीं अछूत हुआ वो पुरूष भी जो जन्मा है उसी से उसी अछूत सी कोख में पली बढ़ी है देह उसकी भी, माह के वो पाँच दिन कैसे अभिशाप हो जाते हैं कि शबरीमाला और […]

कविता

हम क्यूँ लिखें

हम क्यूँ लिखे अपनी मजबूरियां, क्यूँ लिखें कि वो ध्यान नहीं रखता मेरे वजूद का हम क्यूँ लिखें कि हम मोहताज हैं, उसके और वो समझता नहीं मुझे, कुछ भी हम क्यूँ लिखें कि उसकी अनकही,तीखी नज़र भेद देती है मुझे भीतर से, कहीं हम क्यूँ लिखें, उसकी इच्छाओं के समंदर में एक लहर भी […]

कविता

हम हमेशा साथ रहेंगे

हम हमेशा साथ रहेंगे हों चाहे पर्वत की ऊँचाइयाँ या फिर हों सागर की गहराइयाँ नदियों में दिखती हों परछाइयाँ हम सदा संग मिलकर बहेंगे हम हमेशा साथ रहेंगे….. हम हमेशा साथ रहेंगे हों चाहे नज़रों की अठखेलियाँ या फिर हों मन की मनमानियाँ रंग लाएँ जब अपनी रंगीनियाँ हम सदा संग मिलकर रंगेंगे हम […]

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सोचने वाली बात

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः गुरु ही सब कुछ है।दुनिया में हर क्षेत्र में, कहीं भी सफलता पानी हो,एक अच्छे मार्गदर्शक की जरूरत होती है।कई बार गुरु हमें मनुष्य रूप में मिलते  हैं तो कई बार किसी और रूप में। हर मनुष्य को एक गुरु तो वरदान रूप में प्राप्त […]

सामाजिक

उत्तराधिकार

जो अपनी पहले वाली पीढ़ी से प्राप्त हो, वही उत्तराधिकार है। ये उत्तराधिकार की व्यापक परिभाषा है।अर्थ और संपत्ति प्रधान व्यवस्था जो मानव ने अत्यंत श्रम और उद्योग से स्थापित की है वहाँ उत्तराधिकार वो चल और अचल संपत्ति है जो किसी को माता पिता से प्राप्त हो।और अपने इस उत्तराधिकार को पाने के लिए […]

सामाजिक

क्या है हमारा?

हर साल 1 जनवरी को बार बार लोग सनातन संस्कृति का हवाला देकर नववर्ष का स्वागत करने से रोकते हैं लेकिन शायद ही वो अपनी कोशिश में एक प्रतिशत भी सफल होते हों । और तो और इस तरह की पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले भी उससे पहले सैकड़ों लोगों को नववर्ष […]

सामाजिक

बहते पत्थर

बहते पत्थर।पता है क्यूं? हम सब बहते पत्थर ही तो हैं।समय की नदी के साथ बहते हुए पत्थर।जैसे नदी अपने साथ अनगिनत पत्थर लेकर अपनी यात्रा शुरू करती है।हर एक पत्थर अलग-अलग तरह से घिसकर अपने रूप को बदलता जाता है, कुछ मन्दिरों में भगवान बनकर स्थापित हो जाते हैं, कुछ रेल की पटरी के […]