सामाजिक

मित्रता की यादें

मित्रता वो रिश्ता है जो हमें विरासत में नहीं मिलता, न ही वह पूर्व से निर्धारित होता है।ये एक ऐसा रिश्ता है जहां हमें चयन की स्वतंत्रता की पूरी आजादी होती है। मित्रता भी कई प्रकार की होती है,या कहें कि कई श्रेणियों की होती है। मित्रता की शुरुआत जीवन में तब से होती है जबसे हम अपने परिवार जनों की निर्भरता से आजाद होने की स्थिति में आ जाते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, यह इसी से सिद्ध हो जाता है कि जैसे ही अवस्था तीन से चार वर्ष की होती है कि बच्चे अपने आस पास अपने परिवार जनों से इतर अपने हमउम्र मित्र को खोजने लगते हैं जिसके साथ खेलकर वो अपने दिन का कुछ समय व्यतीत कर सकें।ये मित्र आस पास के घरों में रहने वाले बच्चे होते हैं।आयु बढ़ने पर मित्रता का दायरा बढ़ने लगता है और ये आस पड़ोस से निकल विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों तक पहुंच जाता है।अक्सर विद्यालय के मित्र मित्रों की श्रेणी में विशिष्ट स्थान रखते हैं और इस मित्रता को लोग आजीवन निभाने के लिए प्रयास रत भी रहते हैं यदि जीवन की उथल पुथल में अधिक व्यस्तता न हो जाए तो।

हां तो,मित्रों की श्रेणियों पर चर्चा करते हैं,स्कूल में एक कक्षा में कई बच्चे पढ़ते हैं,लेकिन वो सारे मित्र नहीं होते।इसका दायरा भी आपके व्यक्तित्व पर निर्भर है,कुछ लोगों की मित्रता ग्रंथि एक या दो मित्रों पर संतुष्ट हो जाती है वहीं कुछ लोग इस मामले में बड़ा ही उदार हृदय रखते हैं।उनकी मित्र मंडली की सूची दिन प्रतिदिन वृद्धि की ओर अग्रसर होती रहती है।अगर हम अपनी बात करें तो हमारी मित्रता का दायरा सीमित होता था लेकिन हम किसी को अपने स्नेह से वंचित भी नहीं रखना चाहते थे। गर्ल्स स्कूल में पढ़ने के कारण ये संभव भी था।90 के दशक में मित्रता दिवस मनाने का प्रचलन तो अभी हम छोटे शहर वालों तक पहुंचा न था,तो मित्रता के त्योहार के रूप में हम लोग न्यू ईयर मनाया करते थे।और मित्रता की श्रेणी निर्धारण के लिए भी यही दिन चुना गया था,इस श्रेणी निर्धारण का मापदंड होता था न्यू ईयर पर दिया जाने वाला ग्रीटिंग कार्ड। उन दिनों घर से ग्रीटिंग कार्ड के मद में दस से लेकर पचास रुपए तक का आवंटन होता था परिस्थिति अनुसार।बजट और मित्रों की श्रेणी के हिसाब से खरीददारी होती थी।जो केवल अपनी कक्षा में पढ़ते हैं, सहपाठी हैं उनके लिए पचास पैसे वाला ग्रीटिंग कार्ड जो किसी अभिनेता या अभिनेत्री की फोटो हो सकता था या किसी गुलदस्ते अथवा प्राकृतिक दृश्य की फोटो।कुछ ऐसे लोगों भी थे जो केवल सहपाठी नहीं थे लेकिन मित्र भी नहीं थे उनके लिए एक रुपए वाला ग्रीटिंग कार्ड जो बीच से मुड़ा हुआ होता था और अंदर की तरफ शायरी और अपने हृदय के उदगारों को व्यक्त करने के लिए रिक्त स्थान होता था।जो खास थे और मित्र की श्रेणी में आते थे उनके लिए बजट प्राविधान के हिसाब से दो रुपए अथवा पांच रुपए वाला ग्रीटिंग कार्ड खरीदा जाता था जिसमें चार फोल्ड्स होते थे और वो अंदर सुंदर फूलों की कटिंग से सजा होता था, इसमें अपने हृदय के उदगारों को व्यक्त करने के लिए काफी स्थान होता था जहां हम अपने अजीज़ मित्र की शान में कसीदे लिख सकते थे। ग्रीटिंग कार्ड्स पर लिखे जाने वाले संदेश भी मित्रता की श्रेणी का पर्याय होते थे। अठन्नी वाले कार्ड पर केवल ‘ HAPPY NEW YEAR’ और देने और पाने वाले का नाम लिखकर ही इतिश्री कर दी जाती थी।शेरो शायरी और संदेश की गहराई मित्रता की श्रेणी गहराने के साथ ही गहराती जाती थी। उन दिनों लिखे जाने वाले कुछ संदेश भी स्मृति में तैरते हैं,जैसे –

‘ चांदनी रात में चावल पका रही थी,

सहेली तेरी याद में आंसू बहा रही थी।

और

‘ डिब्बे में डिब्बा, डिब्बे में केक

मेरी सहेली लाखों में एक ‘

आप में से कुछ लोग इन मीठी स्मृतियों से अवश्य गुजरे होंगे। उन्हीं मीठी स्मृतियों के साथ आप सभी को मित्रता दिवस की शुभकामनाएं।

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश