लघुकथा

नेग

आज शायद पहली बार बुआ जी इतने बुझे मन से मायके जा रही थीं l “ये नयी पीढ़ी  की बहुएं मानो  बेटी जनने का फल खाकर आयी हैं ,शायद l लगता है मेरा भाई पोते का मुँह देखे बिना ही बूढ़ा हो जायेगा l ऊपर से ये नया चोंचला गढ़ा गया है अबकि बार l  एक तो दूसरी बिटिया ऊपर से छठी मनाई जाएगी l इस बुढ़ापे में मुझे भी  ये नए -नए चोंचले  देखने बाकी रह गए  हैं ,न नेग -दस्तूर का कोई लेना-देना ऊपर से कपडे मिठाई तो ले ही जाने पड़ेंगे।”

यही सब सोच रहीं थीं बुआ जी कि बस कंडक्टर की आवाज से ध्यान टूटा l “सुकुल बाजार वाले उतर जाओ l ”

 मजबूरी थी सो कपड़े मिठाई खरीदने उतर पड़ीं l किसी तरह बुझे मन से कपडे ख़रीदे,दुकानदार को पहले ही हिदायत दे डाली थी कि भैया ज्यादा हाई -फाई मत दिखाना l    

खरीददारी करके खड़ी थीं तभी भतीजा मोटर साईकिल से आ पहुंचा। इतनी नाराज थीं कि उसने पैर छुए तो आशीर्वाद भी नहीं दिया।

ज्यादा लंबा रास्ता नहीं था आधे घण्टे में घर पहुंच गईं। भाभी हर बार की तरह जग में पानी और तसला लेकर पांव धोने पहुंची।देखते ही बोलीं,”लगता है बहुरिया के चक्कर मां तुमहुं बौराए गई हौ। हमहूं का दौड़ाए के मार डाल्यो।” भाभी जवाब में मुस्कुरा दीं।

अच्छी खासी धूम थी,भीड़ – भाड़ थी, बुआ जितने लोगों को देखतीं उतना ही चेहरे का तनाव बढ़ता जाता। आखिर में काजल लगाने की बारी आई, बुआ के चेहरे का तनाव और बढ़ गया, मन में सोचने लगीं, हुंह बिना नेग-न्योछावर के कजरौटा लगाए जाने का होय जाई, का बिटिया लड़ीका हुई जाई?

काजल लगाने को तो बच्ची की बुआ भी थीं,पर बुआ ने ये अधिकार न तो नई पीढ़ी को सौंपा ही था, न ही किसी में हिम्मत थी,उनसे छीन लेने की।

बुआ ने बुझे मन से काजल लगाया,पर नेग की थाली पर निगाह ही न डाली, बोलीं लै जाओ बिटियें बांट लें आपस में।

भाभी के मनुहार पर हाथ में थाली पकड़ी और जैसे ही थाली पर निगाह गई,वो उछल पड़ीं।थाली में एक डिब्बा जिसमें चमचमाती सोने की चेन थी।बुआ हड़बड़ाकर बोलीं, ई का है, केहिके लिए?भाभी ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, अब जो है लै लियो, हमरे लिए जैसे लड़का वैसे बिटिया।

बुआ हतप्रभ रह गईं.!

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश