कविता

अछूता

कब हुआ होगा पहली बार ऐसा
जब अछूत कहलाया,स्त्री का स्त्रीत्व
वही स्त्रीत्व जिससे
जन्मता है पुरूष भी…
फिर क्यों नहीं अछूत हुआ वो पुरूष भी
जो जन्मा है उसी से
उसी अछूत सी कोख में पली बढ़ी है
देह उसकी भी,
माह के वो पाँच दिन
कैसे अभिशाप हो जाते हैं
कि शबरीमाला और सिंगनापुर
जैसे किसी और लोक में स्थित हो जाते हैं
अयप्पा जन्मे थे शिव और मोहिनी से
मोहिनी रूप धारण किया विष्णु ने
तभी सक्षम हो सके जन्म देने में
अगर अछूत है स्त्रीत्व तो
क्यों धरा रूप अछूता का?
अपने पुरुषत्व को त्यागकर
हीनता को अपनाकर…. अशुद्ध होकर
क्यों जन्मा ऐसा ईश्वर जो
पहले ही पक्षपाती हो गया
अपनी जन्मना जाति के प्रति
उसे तो जन्मना चाहिए था उससे
जो अछूत न हो, शुद्ध हो।
और स्त्रीत्व भी क्यों बेताब हो
ऐसे ईश्वर के दर्शन को..
क्या मिलेगा?
कभी पूछ ले खुद से कि
हम क्यों आतुर हैं उसके दर्शन को?
अगर स्त्रीत्व सीमित है अछूत है
तो ईश्वरत्व भी तो है उसी सीमा से बंधा…

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश