कविता

नव उल्लास

धवल हिमशिखरों पर फिर दिनकर ने प्रात जगाया है
नव रश्मि से आलोकित हो एक नया सवेरा आया है
कलिकाओं के मुंदे नयन हैं पर पुष्प आज इतराया है
तुहिन की नन्हीं बूंदों ने तरु का हर पल्लव नहलाया है
धूमिल स्वप्नों को पलकों पर फिर से आज सजाया है
नव वर्ष की मंगल बेला ने फिर नव उल्लास जगाया है

लवी मिश्रा

कोषाधिकारी, लखनऊ,उत्तर प्रदेश गृह जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश