“कुछ तो बता”
क्या किया किसने किया यह क्यूँ किया, कुछ तो बता
घर जला उसे सह लिया पर क्यूँ जला कुछ तो बता॥
जिसने उगा डाला चमन जिसने दिया हर पौध जल
उस बागवाँ को बेलिया तुमने दिया कैसा ये फल॥
कितनी तल्ख तलवार थी डंस गयी जो म्यान को
किस शिला की धार पैनी हुलसा गई सम्मान को॥
कलबाज़ियाँ परिवार में खेली गई जब भी कभी
मिट गए कौरव सभी पांडव पहाड़ गलते सभी॥
रार क्यूँ तकरार क्यूँ कुछ तो बता किरदार तूँ
बैठे जो चलती नाँव में किसकी खता पतवार तूँ॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी