लघुकथा

“बकवास चिंतन”

झिनकू भैया कल शाम को टघरते टघरते आये और बैठक में आसन जमा कर बैठ गए। पूछ लिया, आज शाम को कैसे पधरना हुआ भैया, तो बोले आज नए वर्ष का आगमन है, आधी रात तक जागना ही था सो इधर ही आ गया। बच्चे सब टी.वी.में समाएं हैं, नाच- गाना और चैनलों की भरमार है भाई। समाचार वाले चैनल भी खूब थिरक रहें है पर एक बात बड़ी अजीब लगी। हीरो और हीरोइन जब अपने हूनर दिखाने आते है तो उनके अगल-बगल और उनके पीछे कई बेनाम अदाकाराएं झूम-झूमकर तनतोड़ मेहनत करती हुई दिखती तो हैं पर उनका चेहरा किसी भी कैमरे में नहीं समाता। एकाध बार उनका चेहरा भी तो दर्शकों में झलकना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि उनमे अदा नहीं है, खूबसूरती नहीं है फिर उनको गुमनामी में क्यों नाचना पड़ता है। दूसरों के लिए क्यों सजना- संवरना पड़ता है, मुझे बहुत अजीब लगा, उनका नया साल कब आएगा। कब कैमरा उनकी अदा को अपनी नज़रों में कैद करेगा। उनकी जिंदगी कभी परदे पर स्वतंत्र होकर झूमेंगी या नहीं, यह नहीं जानता पर इतना जरूर देख पाया हूँ कि उनका गतवर्ष जिस दिन नववर्ष पर थिरकेगा, शायद वह आभा उदय का नववर्ष होगा और अदा का हर्ष होगा। वैसाखियों पर अदाओं का जलवा कभी कभी अनकहे सुर में बहुत कुछ कह देता है और वह दौर याद आ जाता है जब हीरो सही में हीरो हुआ करते थे और विलेन कथ्य के विलेन……हीरोइन प्राण हुआ करती थी, प्रतीकों की बाहों में फूल खिलाते हुए…….
हार्दिक बधाई नववर्ष की नवहर्ष की और नव संघर्ष की……..

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ