लघुकथा

नया घर

अमर और रमा दोनों ही कामकाजी दंपत्ति थे । उनका एक दस वर्षीय बेटा सोनु था जो कक्षा चार का विद्यार्थी था । अमर की माताजी कमला सहित यह चार लोगों का परिवार एक बेडरूम के छोटे से फ्लैट में रहता था । चूँकि अमर और रमा दोनों ही कामकाजी थे अतः माताजी की समुचित देखभाल नहीं हो पा रही है यह महसुस कर दोनों मन ही मन दुखी थे ।
अपनी एक सहेली की राय पर रमा ने कमला को वृद्धाश्रम में रखने का फैसला किया । अमर ने भी इस फैसले का समर्थन किया । उसकी नजर में वहां कम से कम माँ का ध्यान तो रखा जायेगा । जबकि कमला ने इस का विरोध किया । उसका कहना था की वह जैसे है खुश है । कम से कम अपनों के बीच तो है । लेकिन रमा उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आई । हर रविवार दोनों कमला से मील आते ।
कमला के न रहने से सोनु उदास रहने लगा था ।
अमर के बाबुजी ने कई साल पहले एक छोटा भूखंड खरीद रखा था । अमर ने वहां पर अपने लिए नया मकान बनाने का काम शुरू करा दिया । एक दिन अपनी माँ के साथ सोनु भी नए घर का काम देखने गया  । अमर ने रमा को घर का नक्शा समझाते हुए बताया ” यह एक बड़ा हॉल है । इसके बगल में रसोई और पीछे की तरफ दो कमरे शयन कक्ष होंगे । एक हमारे लिए और एक सोनु के लिए । ” अभी रमा कुछ जवाब देती कि सोनु अचानक बोला पड़ा ” पापा ! दो कमरे क्यों ? मेरे लिए तो एक ही कमरा काफी है । जब आप लोग बुढे हो जायेंगे मैं आप दोनों को वृद्धाश्रम में भेज दुंगा । फिर दुसरे कमरे की क्या जरुरत है ? ”
सोनु की बातें सुनकर अब अमर और रमा की आँखें खुल चुकी थीं । बीना एक क्षण की देरी किये दोनों ने वृद्धाश्रम जाकर कमला को घर वापस लाया ।
अब दादी और पोते की आँखों में ख़ुशी की चमक थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।