इंसानों ने जब से
इंसानों ने जब से मोहब्बत खोई है यारोँ,
रूह हर रोज़ किसी न किसी की रोई है यारोँ।
जिसकी बेटी उसकी कोख में ही मार दी गई,
उस माँ को देखो रातभर वो रोई है यारोँ।
वो कोयलों के बीच भी बेदाग़ ही निकला,
हीरे ने कब अपनी चमक खोई है यारोँ।
लब खोलता नही फिर भी बहुत कुछ कहता है,
उसकी आँखों में कमाल की क़िस्सागोई है यारोँ।
नज़र के सामने क़त्ल हो जाये तो भी कुछ नही,
इंसानों में इंसानियत भी सोई है यारोँ।
खुद से बात करता हूँ तो ये गुमाँ होता है,
मेरे भीतर मेरे अलावा भी और कोई है यारों।
— जी आर वशिष्ठ