गीतिका/ग़ज़ल

इंसानों ने जब से

इंसानों ने जब से मोहब्बत खोई है यारोँ,
रूह हर रोज़ किसी न किसी की रोई है यारोँ।

जिसकी बेटी उसकी कोख में ही मार दी गई,
उस माँ को देखो रातभर वो रोई है यारोँ।

वो कोयलों के बीच भी बेदाग़ ही निकला,
हीरे ने कब अपनी चमक खोई है यारोँ।

लब खोलता नही फिर भी बहुत कुछ कहता है,
उसकी आँखों में कमाल की क़िस्सागोई है यारोँ।

नज़र के सामने क़त्ल हो जाये तो भी कुछ नही,
इंसानों में इंसानियत भी सोई है यारोँ।

खुद से बात करता हूँ तो ये गुमाँ होता है,
मेरे भीतर मेरे अलावा भी और कोई है यारों।

जी आर वशिष्ठ

जी आर वशिष्ठ

नाम: जी आर वशिष्ठ पता:मकान न.-635, वार्ड न.-2, भगतसिंह सर्किल के पास कदम कॉलोनी,रामबास, तहसील- गोविंदगढ़ , जिला- अलवर, राजस्थान पिन:- 301604 पेशे से मूर्तिकार हूँ ,राजनीति विज्ञान से स्नातकोत्तर उत्तरार्द्ध में अध्ययनरत हूँ। थोड़ा-बहुत लिखता भी हूँ.. मेरी रचनाऐं जिन समाचार पत्रों में आती रहती हैं , उनमें प्रमुख दैनिक वर्तमान अंकुर, नोयड़ा, दैनिक नवप्रदेश, छत्तीसगढ़, दैनिक हमारा मेट्रो, नोयड़ा, राजस्थान की जान, चूरू आदि हैं..