टूट रहे है मानवता से, पल पल मानवता के नाते
टूट रहे है मानवता से, पल पल मानवता के नाते।
जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते॥
भूख गरीबी मिट जायेगी, ये सब तो केवल बाते हैं।
यही सत्य है झोंपडियों की, केवल अँधियारी रातें हैं
मिट जाते हैं कितने जीवन, केवल सुख के स्वप्न सजाते…
जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते…
भीख माँगता बचपन देखा, ग़म से रोता आँगन देखा।
जीवन की इस चकाचौंध में, तिल तिल मरता जीवन देखा॥
हमने वन के माली को ही, देखा है खुद आग लगाते…
जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते…
बस्ती में मातम रहता है, दूर कहीं बसती हैं खुशियाँ।
उनसे पूछो जिनको पल पल, नागिन सी डँसती हैं खुशियाँ॥
जिसके मन पर घाव लगे हो, कब उसको त्यौहार सुहाते…
जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते…
राजनीति ने जुटा लिये है, छल बल के वैकल्पिक साधन।
कहीं खरीदा जाता चंदा, कही रात में बिकता यौवन॥
हमने देखा है ममता को, और किसी का फूल खिलाते…
जीवन पल पल बीत रहा है, आँसू पीते और मुस्काते…
- सतीश बंसल
०४-०१-२०१७