गीत/नवगीत

गीत “अपनी माटी गीत सुनाती”

अपनी माटी गीत सुनाती, गौरव और गुमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।

खेतों में उगता है सोना, इधर-उधर क्यों झाँक रहे?
भिक्षुक बनकर हाथ पसारे, अम्बर को क्यों ताँक रहे?
आज जरूरत धरती माँ को, बेटों के श्रमदान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।

हरियाली के चन्दन वन में, कंकरीट के जंगल क्यों?
मानवता के मैदानों में, दावनता के दंगल क्यों?
कहाँ खो गयी साड़ी-धोती, भारत के परिधान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।

टोपी-पगड़ी, चोटी-बिन्दी, हमने अब बिसराई क्यों?
अपने घर में अपनी हिन्दी, सहमी सी सकुचाई क्यों?
कहाँ गयी पहचान हमारे, पुरखों के अभिमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।

कहाँ गया ईमान हमारा, कहाँ गया भाई-चारा?
कट्टरपन्थी में होता क्यों, मानवता का बँटवारा?
मूरत लुप्त हो गयी अब तो, अपने विमल-वितान की।।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है