“जुकाम हो गई”
हास्य व्यंग काव्य
आज तड़के ही कबरी से मुकालात हो गई
निकालने बैठा पसर भर दूध तो घात हो गई
किसी ने छोड़ दिया बछड़े की गाँठ खूँटे से
अदरक चाय की कड़वी सुलग जज़्बात हो गई॥
लटका हुआ थुथना सुबह से शाम हो गई
चटक बासी हुई मेंहदी खबर सरेयाम हो गई
सप्ताही छुट्टी रविवारी सिनेमा देखेगी दंगल
नहीं शुभ दूध का गिरना अन्नपूर्णा जुकाम हो गई॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी