कविता

“जुकाम हो गई”

हास्य व्यंग काव्य

आज तड़के ही कबरी से मुकालात हो गई

निकालने बैठा पसर भर दूध तो घात हो गई

किसी ने छोड़ दिया बछड़े की गाँठ खूँटे से

अदरक चाय की कड़वी सुलग जज़्बात हो गई॥

लटका हुआ थुथना सुबह से शाम हो गई

चटक बासी हुई मेंहदी खबर सरेयाम हो गई

सप्ताही छुट्टी रविवारी सिनेमा देखेगी दंगल

नहीं शुभ दूध का गिरना अन्नपूर्णा जुकाम हो गई॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

 

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ