गीत/नवगीत

गीत “ऐसे घर-आँगन देखे हैं”

आपाधापी की दुनिया में,
ऐसे मीत-स्वजन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं।।

धीर-वीर-गम्भीर मौन है,
कायर केवल शोर मचाता।
ओछी गगरी ही बतियाती,
भरा घड़ा कुछ बोल न पाता।
बरस न पाते गर्जन वाले,
हमने वो सावन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं।।

जब तक है लावण्य देह में,
दुनिया तब तक प्रीत निभाती।
माया-मोह धरे रह जाते,
जब दिल की धड़कन थम जाती।
सम्बन्धों को धता बताते,
ऐसे घर-आँगन देखे हैं।
बुरे वक्त में करें किनारा,
ऐसे कई सुमन देखे हैं।।

ऐसे भी साहित्यकार हैं,
जो खुदगर्ज़ी को अपनाते।
बने मील के पत्थर जैसे,
लोगों को ही पथ दिखलाते।
जिनका अन्तस्थल पाहन सा,
वो माणिक-कंचन देखे हैं।

बने मील के पत्थर जैसे,
औरों को ही राह बताते।
जो संवेदनशील नहीं है,
वो मानव दानव कहलाता।
रंग बदलता गिरगिट जैसा,
अपना असली “रूप” छिपाता।
अपने बिरुए निगल रहे जो,
वो निष्ठुर उपवन देखे हैं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है