लघुकथा

धन्यवाद

विपिन अपने अपने पहाड़ी खेतों में रखवाली के लिए गया था. अचानक उसे किसी चमकीले कीट-पतंग ने उसे हाथ पर काट लिया. डंक गहरे चला गया था, निकल नहीं पाया. उसे बहुत पीड़ा हुई. जब तक वह अपने घर आया, उसकी पीड़ा शांत हो गई थी. वह डॉक्टर को दिखाने भी नहीं गया. अपने खेत थे, सो उसे तो जाना ही पड़ता था. एक दिन वह अपने कारिंदों को कुछ काम समझा रहा था. तभी न जाने कहां से मधुमक्खियों का बड़ा-सा झुंड आ गया. सबके चेहरे सूजकर लाल हो गए. विपिन को भी मधुमक्खियों ने काटा था, पर उसे कोई सूजन नहीं आई. वह अपनी गाड़ी में सबको डॉक्टर के पास ले आया. डॉक्टर ने उनके डंक निकाले, मरहम लगाया. डॉक्टर ने विपिन से पूछा, कि उसको मधुमक्खियों ने कहां काटा, विपिन ने चेहरे की ओर संकेत करते हुए कहा- ”यहां.”. डॉक्टर को उसका चेहरा बिलकुल ठीक लगा. डॉक्टर भी अचंभित था और विपिन भी. डॉक्टर को कारण समझ नहीं आया. तभी विपिन को पिछली बात याद आ गई. उसने डॉक्टर को बताया. डॉक्टर को बात समझ में आ गई. डॉक्टर ने कहा- ”उस चमकीले कीट-पतंग को धन्यवाद दो, जिसने तुम्हें बचा लिया है. अब कोई भी डंक तुम्हें कभी भी पीड़ा नहीं पहुंचा सकता. विपिन ने चमकीले कीट-पतंग का भी धन्यवाद किया और डॉक्टर का भी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244